Nainital: आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम नहीं था– उपराष्ट्रपति

Nainital: सरोवर नगरी पहुँचे भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आपातकाल के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत की भूमिका धूमिल हो गई, नौ उच्च न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया गया। उन्होंने कहा कि आज का युवा उस अंधकारमय कालखंड से अनभिज्ञ नहीं रह सकता ।


नैनीताल। देश में आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे लोकतंत्र पर ‘भूकंप’ के समान बताया। उत्तराखंड के कुमाऊं विश्वविद्यालय में आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि 25 जून 1975 को देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र अप्रत्याशित संकट में फंसा और लोकतांत्रिक मूल्यों की खुलेआम अवहेलना की गई।

लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला एक भूकंप

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “पचास वर्ष पहले, इसी दिन, विश्व का सबसे पुराना, सबसे बड़ा और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र एक गंभीर संकट से गुज़रा। यह संकट अप्रत्याशित था — जैसे कि लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला एक भूकंप। यह था आपातकाल का थोपना। वह रात अंधेरी थी, कैबिनेट को किनारे कर दिया गया था। उस समय की प्रधानमंत्री, जो उच्च न्यायालय के एक प्रतिकूल निर्णय का सामना कर रही थीं, ने पूरे राष्ट्र की उपेक्षा कर, व्यक्तिगत हित के लिए निर्णय लिया।

21–22 महीनों का कालखंड

राष्ट्रपति ने संवैधानिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद जो 21–22 महीनों का कालखंड आया, वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत अशांत और अकल्पनीय था। यह हमारे लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल था।”

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बताया कि उस समय करीब 1.4 लाख लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया, जिन्हें न तो न्यायिक राहत मिली और न ही अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का मौका।

न्यायपालिका की भूमिका पर भी उठाए सवाल

उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, नौ उच्च न्यायालयों ने स्पष्ट किया कि आपातकाल के बावजूद मौलिक अधिकार स्थगित नहीं किए जा सकते, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने न केवल इन फैसलों को पलट दिया बल्कि आपातकाल को कार्यपालिका का विशेषाधिकार करार दिया। यह लोकतंत्र के लिए गहरा आघात था।

युवा उस अंधकारमय कालखंड को ना भूलें

उपराष्ट्रपति ने युवाओं से अपील की कि वो उस अंधकारमय कालखंड को भूलें नहीं। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार ने इस दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का फैसला लिया है, ताकि भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो और नागरिक सतर्क रहें। युवाओं को जानना चाहिए कि उस समय प्रेस की क्या हालत थी। किन लोगों को जेल में डाला गया, जो बाद में इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बने।

शिक्षा संस्थानों की भूमिका पर जोर

उपराष्ट्रपति ने परिसर आधारित शिक्षा के महत्व का जिक्र करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय केवल डिग्रियां देने का स्थान नहीं बल्कि विचार और नवाचार के केंद्र हैं। उन्होंने कहा कि आपके साथियों के साथ बिताया गया समय आपके सोचने के तरीके को परिभाषित करता है। विचारों पर चर्चा और प्रयोग वही परिवर्तन लाते हैं जिसकी राष्ट्र को आवश्यकता है।

Just do it….Do it now

उन्होंने छात्रों से कहा, एक मशहूर टैगलाइन है- Just do it. मैं इसमें जोड़ना चाहूंगा- Do it now. उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के योगदान पर बल देते हुए कहा कि विश्व के कई विश्वविद्यालयों के पास अरबों डॉलर का पूर्व छात्र फंड है। उन्होंने सुझाव दिया कि अगर कुमाऊं विश्वविद्यालय के 1 लाख पूर्व छात्र सालाना ₹10,000 का योगदान करें, तो हर साल ₹100 करोड़ का फंड खड़ा हो सकता है। पूर्व छात्र फंड से संस्थान आत्मनिर्भर हो सकता है. इससे न केवल आर्थिक सहायता मिलेगी, बल्कि पूर्व छात्र छात्रों का मार्गदर्शन भी कर सकेंगे

 

इस दौरान राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालयों का दायित्व युवाओं को केवल शिक्षित करना नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित, प्रशिक्षित और उत्तरदायी नागरिक के रूप में तैयार करना भी है।