मान्यता है कि तब भूमियाल देवता ने जाकर उस बेटी की रक्षा की तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि प्रत्येक 12 वर्ष में वह बेटी रिंगाली देवी के रूप में अपने मायके भूमियाल देवता के दर्शन को आती है।
रिपोर्ट -सोनू उनियाल
जोशीमठ। अपने देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखंड के कई परिचय देखें और सुने होंगे। वही लोग जिस पथरीले रास्ते और खड़ी चट्टान से होकर गुजर रहे हैं। वह रास्ता कहीं और का नहीं बल्कि एक सैकड़ो वर्ष पुराने मंदिर का है।
यह मंदिर विकासखंड जोशीमठ के सूखी भला गांव से लगभग 5 किलोमीटर दूर समुद्र तल से लगभग 15000 फिट की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मंदिर यहां के भूमियाल देवता का है घने जंगल के बीच मौजूद इस मंदिर का इतिहास कुछ ऐसा है। कि आज से सैकड़ो वर्ष पूर्व इस गांव की एक बेटी (ध्याण) का विवाह उत्तरकाशी में हुआ मान्यता है कि वहां उसे बेटी को प्रताड़ित किया गया तो उसने अपने मायके के भूमियाल देवता से गुहार लगाई और अपनी रक्षा करने को कहा।
मान्यता है कि तब भूमियाल देवता ने जाकर उस बेटी की रक्षा की तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि प्रत्येक 12 वर्ष में वह बेटी रिंगाली देवी के रूप में अपने मायके भूमियाल देवता के दर्शन को आती है।
भूमियाल देवता के मंदिर पहुंचने के लिए बहुत ही खड़ी चढ़ाई और खतरनाक रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। और आस्था ऐसी कि वृद्धा अवस्था में भी यह श्रद्धालु बिना अपनी जान की फिक्र किए इस पथरीली और खड़ी चट्टान पर दर्शन करने पहुंचते हैं।
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