Yashwant Singh Kathoch: उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. यशवंत सिंह कठोच को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी ने मुर्मू ने डॉ यशवंत कठोच को पद्मश्री से सम्मानित किया। डॉ यशवंत कठोच को भारतीय संस्कृति, इतिहास, पुरात्व शोध के कार्यों के लिए पद्मश्री से नवाजा गया है।
कौन है यशवंत सिंह कठोच
डॉ यशवंत सिंह कठोच (Yashwant Singh Kathoch) इतिहास के विशेषज्ञ व जानकार हैं। उत्तराखंड के इतिहास को लेकर उन्होंने काफी कार्य किया और वह इसे किताबों के माध्यम से दुनिया के सामने लाए। आज भी राज्य स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में उनके द्वारा लिखित किताबों को संदर्भित करते हुए प्रश्न बनाए जाते हैं। डॉ कठोच को बतौर इतिहास विशेषज्ञ समय-समय पर लोक सेवा आयोग में भी बुलाया जाता है।
मासौं गांव में 27 दिसंबर 1935 को हुआ जन्म
पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले डॉ यशवंत सिंह कठोच पेशे से शिक्षक थे, लेकिन सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय पुस्तक लेखन और उत्तराखंड से जुड़े इतिहास को खोजने में बिता दिया। उनका जन्म पौड़ी जिले के चौन्दकोट पट्टी के मासौं गांव में 27 दिसंबर 1935 को हुआ था। बचपन से ही पढ़ाई में होशियार कठोच ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के के बाद आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की। उन्होंने वहीं से प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विषय से भी एमए व डी.फिल किया।
इतिहास और पुरातत्व में थी विशेष रुचि
डॉ यशवंत सिंह कठोच ने बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं दीं। वह टिहरी गढ़वाल के प्रतिष्ठित प्रताप इंटर कॉलेज में राजनीति शास्त्र के प्रवक्ता भी रहे। वहीं डॉ कठोच ने कई इंटर कॉलेजों में बतौर प्रधानाचार्य कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान भी वह निरंतर लिखते रहते थे। राजनीति शास्त्र के शिक्षक होने के बाद भी उनकी रुचि इतिहास और पुरातत्व में थी। रिटायर होने के बाद उन्होंने अपनी रुचि को जारी रखा और लगातार लेखन कार्य में जुटे रहे। उन्होंने इतिहास और पुरातत्व पर नवीनतम रिसर्च कर तथ्यों की प्रामाणिकता आदि पर विद्यार्थियों, शोधार्थियों व प्रोफेसरों के लिए किताबें लिखीं, जिनका प्रयोग आज भी छात्र और रिसर्चर करते हैं।
‘उत्तराखंड का नवीन इतिहास’ ने दी अलग पहचान
89 साल के डॉ यशवंत सिंह कठोच अब तक 10 से अधिक किताबें लिखने के साथ 50 से अधिक शोध पत्रों का वाचन कर चुके हैं। मध्य हिमालय का पुरातत्व, उत्तराखंड की सैन्य परम्परा, संस्कृति के पद चिन्ह, मध्य हिमालय ग्रंथ माला समेत कई महत्वपूर्ण किताबें वह लिख चुके हैं, लेकिन उनकी पुस्तक ‘उत्तराखंड का नवीन इतिहास’ ने उन्हें एक अलग पहचान दी। इस पुस्तक में डॉ कठोच ने वह सब शोध कर लिखा जो एटकिंसन के हिमालयन गजेटियर में लिखना छूट गया था। इस पुस्तक में उत्तराखंड के इतिहास की बारीकी से जानकारी है।
इतिहास को खोजने के बाद किताब में करते हैं दर्ज
डॉ कठोच की लिखने की शैली को लेकर एक किस्सा काफी प्रचलित है। दरअसल कठोच कण्वाश्रम पर एक लेख लिख रहे थे। यह लेख उन्होनें तकरीबन 20 साल पहले लिखा लेकिन इस लेख को लिखने के बाद भी उन्हें वह अनूभति नहीं हुई, तो वह स्वयं कण्वाश्रम के जंगल में गए। यहां पुरातत्व व अवशेषों को लेकर खुद शोध किया और तस्दीक की।
शोध छात्रों के लिए लाभदायक हैं ये पुस्तकें
बता दें कि डॉक्टर यशवंत सिंह कठोच उत्तराखंड शोध संस्थान के संस्थापक सदस्य हैं। इस संस्थान की स्थापना 1973 में की गई थी। डॉक्टर कठोच ने मध्य हिमालय की कला- एक वास्तु शात्रीय अध्ययन, मध्य हिमालय का पुरातत्व, संस्कृति के पदचिन्ह, सिंह भारती और उत्तराखंड की सैन्य परंपरा समेत एक दर्जन पुस्तकें लिखी हैं। शोध छात्रों के लिए ये डॉ कठोच की ये पुस्तकें लाभदायक साबित हो रही हैं। उत्तराखंड और यहां की संस्कृति के साथ ही मध्य हिमालय में रुचि रखने वालों के लिए उनकी ये किताबें मार्गदर्शक का काम करती हैं।
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अभी वो मध्य हिमालय के पुराभिलेख और इतिहास तथा संस्कृति पर निबंध जैसी रचनाओं को पूर्ण करने का काम कर रहे हैं। डॉक्टर यशवंत सिंह कठोच की ये पुस्तकें जल्द पाठकों तक पहुंचेंगी।