नहीं रहे मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन, जानें कैसे फर्श पर सोने वाला व्यक्ति बना था उस्ताद

विश्वप्रसिद्ध तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन अब इस दुनिया में नहीं रहे। उनका निधन 15 दिसंबर को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुआ। वह 73 वर्ष के थे और वहां उनका इलाज चल रहा था, जहां उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। जाकिर हुसैन के निधन से पूरे संगीत जगह में शोक की लहर दौड़ पड़ी है। सोशल मीडिया पर फैंस से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स संगीतकार को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

पीएम मोदी ने जताया शोक 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन पर गहरा शोक जताया है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि वे एक सच्चे प्रतिभाशाली शख्स थे। देश उन्हें हमेशा इसी रूप में याद करेगा। उन्होंने आगे लिखा कि उस्ताद जाकिर हुसैन ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में क्रांति ला दी। उन्होंने तबला वादन के अद्भुत लय से लाखों लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। उन्होंने अपने बेहतरीन तबला वादन शैली को भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक मंच तक पहुंचाया। इसके माध्यम से, उन्होंने भारतीय शास्त्रीय परंपराओं को वैश्विक संगीत के साथ सहजता से मिलाया। उनकी शानदार और मन को मोहने वाली प्रस्तुति हमेशा ही संगीतकारों, संगीत प्रेमियों और संगीत में रुचि रखने वाले लोगों की पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी।

उस्ताद जाकिर हुसैन को मिला सम्मान 

9 मार्च 1951 को मुंबई में जन्मे उस्ताद जाकिर हुसैन ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था। 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम ‘लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड’ लॉन्च किया था। उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उस्ताद को 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला। 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग ऐल्बम के लिए 3 ग्रैमी जीते। इस तरह जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड अपने नाम किए।

जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा

उनके पिता का नाम उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी और मां का नाम बावी बेगम था। उस्ताद अल्लारक्खा अपने समय के बेहद प्रसिद्ध तबला वादक थे। उन्होंने ही जाकिर को संगीत की शुरुआती तालीम दी। जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से हुई थी। उन्होंने ग्रेजुएशन मुंबई के ही सेंट जेवियर्स कॉलेज से किया था।

सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे जाकिर

हुसैन के अंदर बचपन से ही धुन बजाने का हुनर था। वे कोई भी सपाट जगह देखकर उंगलियों से धुन बजाने लगते थे। यहां तक कि किचन में बर्तनों को भी नहीं छोड़ते थे। तवा, हांडी और थाली, जो भी मिलता, वे उस पर हाथ फेरने लगते थे। जब वह ट्रेन में यात्रा करते थे और सीट नहीं मिलती थी, तो वह अपना तबला गोद में रखकर फर्श पर सो जाते थे ताकि तबले को कोई नुकसान न पहुंचे।

जाकिर हुसैन का सबसे यादगार पल 

जब जाकिर हुसैन 12 साल के थे, तब अपने पिता के साथ एक कॉन्सर्ट में गए थे। उस कॉन्सर्ट में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, बिस्मिल्लाह खान, पंडित शांता प्रसाद और पंडित किशन महाराज जैसे संगीत की दुनिया के दिग्गज पहुंचे थे। जाकिर हुसैन अपने पिता के साथ स्टेज पर गए। परफॉर्मेंस खत्म होने के बाद जाकिर को 5 रुपए मिले थे। एक इंटरव्यू में उन्होंने इस बात का जिक्र करते हुए कहा था- मैंने अपने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन वे 5 रुपए सबसे कीमती थे।

ओबामा ने भेजा था व्हाइट हाउस में कॉन्सर्ट के लिए न्यौता 

अमेरिका में भी जाकिर हुसैन को बहुत सम्मान मिला। 2016 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें ऑल स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था। जाकिर हुसैन पहले इंडियन म्यूजिशियन थे, जिन्हें यह इनविटेशन मिला था।

शशि कपूर के साथ हॉलीवुड फिल्म में एक्टिंग की

जाकिर हुसैन ने कुछ फिल्मों में एक्टिंग भी की है। उन्होंने 1983 की एक ब्रिटिश फिल्म हीट एंड डस्ट से डेब्यू किया था। इस फिल्म में शशि कपूर ने भी काम किया था। जाकिर हुसैन ने 1998 की एक फिल्म साज में भी काम किया था। इस फिल्म में हुसैन के अपोजिट शबाना आजमी थीं। जाकिर हुसैन को फिल्म मुगल-ए-आजम (1960) में सलीम के छोटे भाई का रोल भी ऑफर हुआ था, लेकिन पिता उस्ताद अल्लारक्खा ने फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया। वे चाहते थे कि उनका बेटा संगीत पर ही ध्यान दे।