Pithoragarh: जहां बचपन बिताया, पहली बार विद्यालय की राह पकड़ी, वही अपने पैतृक गांव पहुंचे मुख्यमंत्री, हुए भावुक

Pithoragarh: सीएम पुष्कर सिंह धामी लगभग 45 साल बाद पिथौरागढ़ में स्थित अपने पैतृक गांव टुंडी-बारमौ में पहुंचे। इस दौरान सीएम के साथ उनकी मां विष्णु देवी भी नजर आईं। यहां पर ग्रामीणों ने ढोल-नगाड़ों, देव गीत और मंगल गीतों के साथ उनका पारंपरिक तरीके से उनका स्वागत किया।

मुख्यमंत्री धामी ने गांव पहुंचते ही अपने ईष्ट देवता ब्रह्मचारी मंदिर में पूजा-अर्चना की और माथे पर मिट्टी लगाकर आशीर्वाद लिया। इसके बाद वे खंडेनाथ मंदिर पहुंचे, जहां ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं ने माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया। देव डंगरियों ने पारंपरिक अनुष्ठानों के बीच उन्हें आशीर्वाद दिया।

पूजा के बाद CM ने बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया, महिलाओं को मिठाई खिलाई और गांव के हर व्यक्ति से आत्मीयता के साथ मिले। ग्रामीणों ने बताया कि उनके नाती और गांव के “लौटकर आए बेटे” को अपने बीच देखकर वे बेहद खुश हैं।

CM धामी करीब दो घंटे गांव में रुके और लोगों की समस्याएं सुनीं। उन्होंने बताया कि गांव में आज तक अस्पताल नहीं बना है और बीमार पड़ने पर 35 किलोमीटर दूर जिला अस्पताल जाना पड़ता है। वहीं सीएम ने कुमाऊंनी में भाषण की शुरुआत कर कहा कि क्षेत्र के विकास में कोई कमी नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने बताया कि सरकार 700 करोड़ की लागत से पिथौरागढ़ में मॉडर्न मेडिकल कॉलेज बना रही है, जो राज्य का सबसे सुविधायुक्त मेडिकल कॉलेज होगा।

 

इसके साथ ही अपने बचपन को याद करते हुए CM धामी भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि गांव पहुंचते ही बुजुर्गों का स्नेहिल आशीर्वाद और मातृशक्ति का अथाह प्रेम मन को भावनाओं से भर गया। उन्होंने कहा कि कई बुजुर्ग आज भी मुझे बचपन के नाम से पुकारते हैं, यह अपनत्व शब्दों में समाना मुश्किल है। नौनिहालों और युवाओं की मुस्कुराहटों में वह सारी स्मृतियां फिर जीवंत हो उठीं, जिन्होंने मुझे मूल्य सिखाए और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

उन्होंने कहा कि हर चेहरा अपना लगा, हर आंगन स्मृतियों से भरा और हर कदम बचपन की गलियों से होकर गुजरता हुआ महसूस हुआ। टुंडी–बारमौं मेरे लिए सिर्फ एक गांव नहीं बल्कि मेरी जड़ें, संस्कार और मेरी पहचान है।

सीएम ने कहा कि तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई उन्होंने इसी गांव के स्कूल में की। सर्दियों में बिना स्वेटर-कपड़ों के टुंडी से बारमौ तक पैदल पढ़ने जाना, उंगलियों का ठंड से सुन्न हो जाना, ये सब याद कर वे पुरानी स्मृतियों में खो गए। उन्होंने कहा कि “आज जो भी हूं, इसी भूमि के आशीर्वाद से हूं।”