New Delhi: हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि से अतिक्रमण हटाने के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई टल गई है। अब अगली सुनवाई नौ दिसंबर को होगी।
बता दें कि रेलवे की ओर से कहा गया है कि हल्द्वानी में उनकी 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है जिनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी काबिज हैं। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज (मंगलवार) को सुनवाई होनी थी। इसे लेकर हल्द्वानी में अलर्ट के साथ ही बनभूलपुरा को हाईअलर्ट मोड पर रखा गया था। यहां बाहरी व्यक्तियों और बाहर के वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के साथ आईटीबीपी और सीआरपीएफ को भी तैयार रहने के निर्देश दिए गया था। शाम तक लोगों की निगाहें सुनवाई पर टिकी रही, लेकिन कोर्ट ने आज सुनवाई टाल दी।
19 साल से जारी है अतिक्रमण को हटाने की जंग
बनभूलपुरा और इसके आसपास रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का मामला लगभग दो दशक से चल रहा है। 19 साल पहले स्टेशन के आसपास प्रशासन ने अतिक्रमण हटाया भी था लेकिन हदबंदी न करने के कारण बाद के वर्षों में फिर से यहां अतिक्रमण हो गया। बता दें कि रेलवे की ओर से कहा गया कि हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ भूमि पर अतिक्रमण किया गया है जिनमें करीब 4365 अतिक्रमणकारी जमे हैं।
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी बताते हैं कि बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर वर्ष 2007 में भी हाईकोर्ट ने आदेश पारित किए थे। तब प्रशासन ने 2400 वर्गमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त किया था। 2013 में उन्होंने गौला नदी में हो रहे अवैध खनन और गौला पुल के क्षतिग्रस्त होने के मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि के अतिक्रमण का मामला फिर से सामने आ गया। 9 नवंबर 2016 को कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए रेलवे को दस सप्ताह के भीतर समस्त अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए। इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र देकर उक्त जमीन को प्रदेश सरकार की नजूल भूमि बताया लेकिन 10 जनवरी 2017 को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
जोशी बताते हैं कि इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में कई विशेष याचिकाएं दाखिल हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वह अपने व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें और इनका परीक्षण हाईकोर्ट करेगा। इसके लिए तीन माह का समय दिया गया। छह मार्च 2017 को कोर्ट ने रेलवे को अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर याचिकाकर्ता जोशी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। रेलवे और जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा लेकिन कब्जा तब भी नहीं हटा।
जोशी ने 21 मार्च 2022 को हाईकोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर कर कर कहा कि रेलवे अपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने में नाकाम साबित हुआ है। 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने तथ्य न्यायालय में रखने के निर्देश दिए लेकिन अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। 20 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने फिर से रेलवे को अतिक्रमणकारियों को हफ्ते भर का नोटिस जारी करते हुए अतिक्रमण हटाने संबंधी निर्देश दिए। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया जहां आज इस पर सुनवाई होनी थी।
