भारतीय राजनीति का एक अलग चेहरा थे पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी, विरोधी भी देते थे सम्मान

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,

अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी,

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं,

गीत नया गाता हूं… गीत नया गाता हूं।”

Atal Bihari Vajpayee death anniversary2023: महान कवि बहुमुखी प्रतिभा के धनी विराट व्यक्तित्व और भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पांचवी पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 2018 में उनका निधन हुआ था। एक कवि और साहित्यकार के रूप में उनकी कविताएं और रचनाएं हों या बतौर प्रधानमंत्री पोखरण-2 और कारगिल युद्ध, उन्होंने हमेशा देश के युवाओं में जोश-जुनून भरा है। वे एक राष्ट्रनिर्माता थे, जिनका उद्देश्य भारत को विश्वशक्ति बनाना रहा। देशभक्ति से ओतप्रोत अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसी शख्सियत थे जिनको उनके विरोधी भी सम्मान देते थे। आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है। तो चलिए जान लेते है उनके राजनैतिक सफर के बारे में…..

 अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन  

एक सुलझे राजनेता, प्रखर वक्ता और बेहतरीन कवि अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपोयी स्कूल में अध्यापक थे। उनकी शुरुआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में फिर हुई थी। उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) से हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी में बीए, और कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की।

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ”

 पत्रकारिता के बाद राजनीति में शुरुआत

छात्र जीवन से ही अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीतिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिताओं आदि में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। 1939 अपने छात्र जीवन में ही वे स्वयंसेवक की भूमिका में आ गए थे। 1942 में उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी से उनकी मुलाकात हुई। उनके ही आग्रह पर अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय जनसंघ पार्टी की सदस्यता ली थी जिसका गठन 1951 में हुआ था।

”मौत से ठन गई ठन गई

मौत से ठन गई

जूझने का मेरा इरादा न था

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा”

 

 कविताओं से भी खासा लगाव

अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की और अनेक पुस्तकों की रचना की। उनको कविताओं से भी खासा लगाव रहा। वह अपने विचारों को कई बार कविताओं के माध्यम से भी सामने रखते थे। वे एक कुशल वक्ता हैं और उनके बोलने का ढंग भी बिलकुल अलग है। वे दो मासिक पत्रिकाओं ‘राष्ट्रधर्म’ और ‘पांचजन्य’ के संपादक रहे। साथ ही दो दैनिक समाचार पत्र ‘स्वदेश’ और ‘वीर अर्जुन’ के भी संपादक रहे। उनकी कविताओं की बेहतरीन रचना ‘मेरी इक्‍यावन कविताएं’ हैं।

 

”बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं 
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर”

 

 नेहरू को भी किया प्रभावित

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1957 में उत्तर प्रदेश जिले के बलरामपुर लोकसभा सीट से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता और फिर 1957 से 1977 तक लगातार जनसंघ संसदीय दल के नेता के तौर पर काम करते रहे। इस बीच 1968 से 1973 तक पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी प्रभावित किया और सभी पर अपने विशिष्ठ भाषा शैली का प्रभाव छोड़ते रहे।

तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने

अटल बिहारी वाजपेयी दशकों तक भाजपा का बड़ा चेहरा और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में एक थे। वह तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। उनका पहला कार्यकाल 1996 में मात्र 13 दिनों का था। इसके बाद, वह 1998 में फिर प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 13 महीने तक इस पद को संभाला। 1999 में वह तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी नेता थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया।

संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में दिया भाषण

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 से 1979 तक प्रधानमंत्री मोराजी देसाई के मंत्रिमंडल में भारत के विदेश मंत्री के रूप में भी काम किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के तौर पर पूरे विश्व में भारत की शानदार छवि निर्मित की। विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले देश के पहले वक्ता बने थे।

 

”पृथिवी लाखों वर्ष पुरानी

जीवन एक अनंत कहानी

पर तन की अपनी सीमाएँ

यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है, अंतिम दस्तक पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें”

 

 पोखरण परमाणु परीक्षण करवाया

दुनिया को भारत की परमाणु शक्ति का एहसास दिलाने वाले भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ही थे। अनेक अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बाद भी उन्होंने पोखरण परमाणु परीक्षण को करवाया और भारत को एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाया। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव, अटल बिहारी बाजपेयी को अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध बनाने के लिए, उन्होंने 19 फरवरी 1999 को दिल्ली से लाहौर तक सदा-ए-सरहद नाम की एक बस सर्विस शुरू की थी जिसमें उन्होंने भी एक बार यात्रा की थी।

 

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाईं से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें, बुझी हुई बाती सुलगाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल

वतर्मान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

आहुति बाक़ी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज्र बनाने नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ”

 

 अटल बिहारी वाजपेयी को मिले कई सम्मान

अटल बिहारी वाजपेयी को कई बार सम्मनित किया जा चुका है। उन्हें 1992 में पद्म विभूषण, 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार व गोविंद वल्लभ पंत जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया। उनको 2015 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया था।

 

”जन्म-मरण का अविरत फेरा

जीवन बंजारों का डेरा

आज यहाँ, कल कहाँ कूच है

कौन जानता किधर सवेरा

अँधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें”

 

 स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरु

अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सड़क मार्गों के विस्तार हेतु स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना को प्रारंभ किया था। उनके कार्यकाल में भारत में इतनी सड़कों का निर्माण हुआ जितनी शेरशाह सूरी के शासनकाल में हुआ था। उन्होंने 100 साल पुराने कावेरी जल विवाद को भी सुलझाया था।

 

क्या खोया, क्या पाया जग में

मिलते और बिछुड़ते मग में

मुझे किसी से नहीं शिकायत

यद्यपि छला गया पग-पग में

एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें”

 

2018 में 16 अगस्त को हुआ था निधन

अपने विनम्र और मिलनसारव्यक्तित्व के कारण अटल बिहारी वाजपेयी के विपक्ष के साथ भी हमेशा उनके मधुर सम्बन्ध रहे। उनकी विरोधी पार्टी के नेता तक उनका लोहा मानते थे। वे हमेशा एक ओजस्वी और प्रभावी वक्ता रहे। 2018 में 16 अगस्त को दिल्ली एम्स में उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।