”टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता…
कहते हैं परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों..अगर साहस, हौसला, ढृड संकल्प हो तो इनके आगे मंजिलों को झुकना ही पड़ता है। इसी तरह देवभूमि उत्तराखंड में भी कई ऐसी वीरांगनाएं…
दिहाड़ी मजदूरी कर पूरी कर ली PhD प्रोफेसर बनना है सपना …………………………………… निगाह तेरी लक्ष्य पे… तू मुश्किलों से डर नहीं…. कठिन डगर पे चल के ही…. तू मंज़िलों को…