Chamoli: एक और मनोज चला गया…और हम सब खामोश रह गए” क्या ये आत्महत्या है या साजिश ?

एक मार्मिक अपील – इंसाफ के लिए

इन्दर सिंह बिष्ट, जोशीमठ (चमोली)


मनोज कहाँ गया?”— अब यह सवाल नहीं रहा,अब यह चीख बन चुका है।

Chamoli: 29 जून 2025 की वो रात, अब इतिहास की एक खामोश चीख बन चुकी है। वो रात, जिसने एक पहाड़ी परिवार के सपनों को, एक माँ की ममता को, और एक युवा के जीवन को सदा के लिए लील लिया।

वो लड़का — मनोज सिंह,

एक सामान्य सा नाम, लेकिन आज पूरे नंदानगर घाटी, गोविंदघाट और हेमकुंड साहिब के रास्तों में यह नाम एक प्रतीक बन गया है – न्याय की प्रतीक्षा में टकटकी लगाए एक गुमनाम आवाज़ का प्रतीक।

 29 जून की रात — घाँघरिया के जंगल में दबी एक साज़िश

मनोज हर रोज़ की तरह यात्रियों को हेमकुंड साहिब तक घोड़े से चढ़ाई करवाता था। कड़ी मेहनत, पसीना, और पहाड़ की ठंडी हवाओं से जूझता हुआ, वह अपने परिवार के लिए रोटी जुटाता था। लेकिन 29 जून की रात को एक झगड़ा हुआ  देवेन्द्र चौहान नामक घोड़े के मालिक से, जिसका अंजाम पुलिस चौकी में कुछ बातचीत के बाद खत्म बताया गया।लेकिन फिर…मनोज अगली सुबह अपने डेरे से गायब हो गया।

घंटियों से भरी चुप्पी

परिवार ने फोन किया 

पहले घंटी बजी, फिर… फोन स्विच ऑफ हो गया।

कोई सूचना नहीं,

कोई जवाब नहीं।

3-4 दिन तक कोई सुराग न मिलने पर मनोज का भाई दीपक और विनोद गाँव के अन्य लड़कों के साथ गोविंदघाट पहुँचा। हर जगह पूछा, लेकिन एक ही जवाब मिला —“29 जून के बाद मनोज को किसी ने नहीं देखा।”

 एफआईआर और प्रशासन की उदासीनता

परिवार का बयान दर्ज करने में पुलिस को 10 दिन लग गए।सोशल मीडिया और स्थानीय जनता के भारी दबाव के बाद 11 जुलाई को गढ़वाल रेंज के आईजी राजीव स्वरूप को देहरादून में ज्ञापन सौंपा गया, तब जाकर पुलिस हरकत में आई। एफआईआर दर्ज हुई — लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

13 जुलाई 2025 — वो दृश्य जिसने रुला दिया

आज, उस जंगल से एक खबर आई —मनोज का शव एक जंगल मे लकड़ी लेने गया नेपाली मजदुर को एक पेड़ से लटका मिला।

हाँ, जिस मनोज को माँ नौमी देवी हर रोज़ याद करके रोती थीं, जिसके लौट आने की आस लगाए पिता सुरेन्द्र सिंह बिष्ट (सेना से रिटायर्ड) हर शाम दरवाज़े की ओर देखते थे —वो अब लौट कर नहीं आएगा।

वो पेड़ अब केवल एक शाख नहीं,

एक गवाह है —

हत्या का, साज़िश का, और हमारी चुप्पी का।

एक सपना जो अब कभी पूरा नहीं होगा

मनोज का सपना था —तीन महीने घाँघरिया में नौकरी करके पैसे जमा करना और एक नई बाइक खरीदना। उसने दोस्तों से कहा था —”इस बार सीजन खत्म होने से पहले बाइक जरूर लेकर जाऊँगा।” लेकिन अब…वो बाइक कभी नहीं आएगी, और वो बेटा भी कभी घर नहीं लौटेगा।

क्या ये आत्महत्या थी या सुनियोजित हत्या? 

  •  चेहरे पर पौधों और मिट्टी का कचरा क्यों था?
  •  पैरों में चप्पल क्यों नहीं थी?
  • शव के पास चप्पल कौन रख गया और क्यों?
  • CCTV फुटेज अब तक सार्वजनिक क्यों नहीं हुए?
  • देवेन्द्र चौहान से पूछताछ में क्या निकला?
  • पुलिस ने घटना के दिन तुरंत एफआईआर क्यों नहीं की?

मनोज की मौत को क्षेत्र के लोग साफ़ तौर पर हत्या मान रहे हैं।

पुलिस अधीक्षक की प्रतिक्रिया

इस मामले में चमोली जिले के पुलिस अधीक्षक श्री सर्वेश पंवार ने बयान दिया है:–

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि यह हत्या है या आत्महत्या। अगर यह हत्या पाई गई, तो दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।”

अब जिम्मेदारी है कि प्रशासन इस वादे को निभाए —और मनोज के परिवार को न्याय दिलाए।

अब सवाल नहीं — मनोज को न्याय चाहिए

हम प्रशासन से स्पष्ट मांग करते हैं:

1. इस मामले की CBI या उच्च न्यायिक जांच हो।

2. देवेन्द्र चौहान और अन्य संदिग्धों से कठोर पूछताछ हो।

3. CCTV, कॉल डिटेल और मोबाइल लोकेशन की गहन पड़ताल हो।

4.परिवार को हर चरण की जानकारी दी जाए और जांच पारदर्शी रखी जाए।

अब चुप रहना गुनाह है

मनोज अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसका सवाल अब हमारे सामने खड़ा है। अगर आज हम नहीं बोले, तो कल कोई और मनोज ऐसे ही साज़िश का शिकार हो जाएगा —और प्रशासन फिर चुप रहेगा।

 श्रद्धांजलि मनोज को… और संकल्प न्याय का

मनोज सिर्फ एक बेटा नहीं था —वो अपने परिवार की उम्मीद, माँ की दुआ, और इस समाज का मेहनती सपूत था।

अब समय है —

हम सब एकजुट होकर उसकी माँ की पुकार बने 

बहुत देर कर दी हुज़ूर आते-आते — अब और देर न हो।

हमें मनोज नहीं मिला, पर अब इंसाफ़ तो मिले।”