दहेज के लिए की थी पत्नी की निर्मम हत्या, अब कोर्ट ने पति, सास-ससुर को सुनाई फांसी की सजा

दहेज के कारण आज भी समाज में महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, उनका शोषण होता है और उनके साथ घरेलू हिंसा होती है। ऐसे में कई बार उनकी मौत भी हो जाती है या उन्हें जान से मार दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला बरेली से सामने आया, जहां पति और सास-ससुर ने चंद पैसों की लालच में महिला की बांके से गला काटकर हत्या कर दी थी। हालांकि, इस मामले में अब बरेली की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने दहेज हत्या के मामले में तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई है। इसके अलावा तीनों पर 1 लाख 80 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता दिगंबर पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि बरेली के देवरिया थाना क्षेत्र की रहने वाली फराह की शादी 2 साल पहले नवाबगंज क्षेत्र के रहने वाले मकसद अली से हुई थी। शादी के बाद से मकसद अली और ससुराल वाले दहेज में बुलेट बाइक और सोने के जेवरात की मांग कर प्रताड़ित करते थे।

 सास-ससुर और पति को फांसी की सजा

1 मई 2024 की शाम को फरहा की गला काटकर निर्मम हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना के बाद पूरे मामले में आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। अभियोजन की ओर से इसमें आठ गवाह और आठ साक्ष्य पेश किए गए। फास्ट ट्रैक कोर्ट बरेली के जज रवि कुमार दिवाकर ने मकसद अली और उसके माता-पिता को दोषी पाते हुए फांसी की सजा सुनाई है।

दहेज सिर्फ महिला नहीं बल्कि मायके वालों के प्रति भी अपराध

वहीं जज रवि कुमार दिवाकर ने अपने फैसले में दहेज प्रथा की निंदा करते हुए सख्त टिप्पणियां कीं और समाज को चेतावनी दी कि यदि इस कुप्रथा को नहीं रोका गया, तो आने वाली पीढ़ियां भी इसका दंश झेलेंगी। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि दहेज की मांग सिर्फ महिला के प्रति अपराध ही नहीं है। बल्कि उस महिला के मायके वालों के प्रति भी अपराध है। कोर्ट ने महिला और उनके माता-पिता की भावनाओं को एक कविता के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। कोर्ट ने कहा है कि जेब में रखा पेन जब कोई मांग ले तो हम देने में हिचकिचाते हैं, ये बेटी वाले भी क्या जिगर रखते हैं, जो कलेजे का टुकड़ा सौंप देते हैं…।

ये कोर्ट की जिम्मेदारी

कोर्ट ने कहा है कि न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वह भावी पीढ़ी के लिए एक अच्छे मूल्य और मार्गदर्शन स्थापित करें। उन्होंने स्वामी विवेकानंद की बात का जिक्र करते हुए कहा है कि किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा मापदंड उस राष्ट्र का महिलाओं के प्रति व्यवहार है। महिलाओं के विरुद्ध अपराध न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान और गरिमा को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक विकास की गति को भी बाधित करता है।

आदम और हव्वा व लैला-मजनू के आचरण के विपरीत है यह कृत्य

वहीं कोर्ट ने अपने आदेश में बाबा आदम और लैला-मजनू के किस्सों का भी जिक्र किया। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि खुदा ने बाबा आदम के अकेलेपन को दूर करने के लिए हव्वा को उत्पन्न किया था। हव्वा ने खुदा की बात नहीं मानी, तो दोनों को स्वर्ग से निकाल दिया गया था। दोनों ने पृथ्वी पर तमाम कष्ट झेले लेकिन बाबा आदम ने हव्वा को कुछ नहीं कहा। अदालत ने शीरी-फरहाद की कहानियों का भी जिक्र किया और कहा कि यहां तो एक पति ने ही दहेज के लालच में अपनी पत्नी को मार डाला।

बता दें कि जज रवि कुमार दिवाकर अपने फैसलों के लिए जाने जाते हैं और वह अभी तक कई आपराधिक मामलों में फांसी की सजा सुना चुके हैं। उनके फैसले में रामायण और कई कहानियों का भी जिक्र किया जाता है।