FAUJA SINGH: फौजा सिंह को ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ यानि पगड़ी वाला तूफान के नाम से जाना जाता था। उनकी फिटनेस, अनुशासन और जज्बा हर उम्र के लोगों के लिए प्रेरणा बन गया।
Old Marathon Runner FAUJA SINGH: सपने देखने और उसे पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती। आप जो करना चाहते हैं, उसे कभी भी, किसी भी उम्र में शुरू कर सकते हैं। इसका सबसे जीवंत उदाहरण थे भारतीय मूल के ब्रिटिश मैराथन एथलीट फौजा सिंह..114 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह चुके इस महान शख्सियत की कहानी असाधारण जज्बे और अपार दुखों से लड़ने की प्रेरक मिसाल रही है।
हादसे में निधन
मैराथन एथलीट फौजा सिंह अब इस दुनिया में नहीं है। पंजाब के जालंधर में 15 जुलाई को हुए एक सड़क हादसे में 114 साल के फौजा सिंह का निधन हो गया। वह सैर के लिए अपने घर से निकले थे, तभी एक वाहन ने उन्हें टक्कर मार दी। हादसे के बाद उन्हें गंभीर हालत में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली।
पीएम मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फौजा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया। पीएम ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, ‘फौजा सिंह जी अपने अद्वितीय व्यक्तित्व और फिटनेस जैसे महत्वपूर्ण विषय पर भारत के युवाओं को प्रेरित करने के तरीके के कारण असाधारण थे। वह अविश्वसनीय दृढ़ संकल्प वाले एक असाधारण एथलीट थे। उनके निधन से मुझे बहुत दुख हुआ। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और दुनिया भर में उनके अनगिनत प्रशंसकों के साथ हैं।
कौन थे फौजा सिंह ?
फौजा सिंह का जन्म एक किसान परिवार में एक अप्रैल 1911 को पंजाब के जालंधर जिले के ब्यास पिंड में हुआ था। जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था। फौजा सिंह चार भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनका बचपन एक सामान्य ग्रामीण परिवेश में बीता। वे शुरू से ही मेहनती स्वभाव के थे और खेती-किसानी में हाथ बंटाया करते थे। शारीरिक रूप से मजबूत और मेहनती होने के कारण उनका शरीर हमेशा फिट रहा, जो बाद में उनकी धावक यात्रा में सहायक बना।
फौजा सिंह ने कई दुख झेले
फौजा सिंह की शादी ज्ञान कौर से हुई थी। उनके छह बच्चे हुए, तीन बेटे और तीन बेटियाँ। अपने जीवन में फौजा सिंह ने कई दुख झेले, फौजा सिंह के जीवन में दुखद मोड़ 1992 से शुरू हुआ, जब उनकी पत्नी ज्ञान कौर का निधन हो गया। इसके दो साल बाद उनके बेटे की भी दुर्घटना में मौत हो गई। अगले साल उनकी बड़ी बेटी भी बच्चे को जन्म देते समय चल बसी। इतने दुखद हादसों ने फौजा सिंह को अंदर से तोड़ दिया और उनका जीवन अकेलेपन से भर गया।
जीवन के एक दुखद मोड़ ने दी दौड़ने की प्रेरणा
इसके बाद फौजा सिंह भारत से लंदन चले तो गए, लेकिन वहां की भाषा, माहौल और संस्कृति से बिल्कुल अनभिज्ञ थे। वहां का एकाकी जीवन और अजनबीपन उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। वे सामाजिक रूप से कट चुके थे और जिंदगी उन्हें अब बोझ लगने लगी थी लेकिन उन्होंने 1995 में खुद को फिर से खड़ा किया और दौड़ को जीवन का उद्देश्य बना लिया।
कैसे मिला पगड़ी वाला तूफान नाम
फौजा सिंह ने मुंबई से लेकर कनाडा और लंदन में मैराथन दौड़कर अपनी अलग पहचान बनाई थी। उन्होंने 2000 में पहली बार दौड़ना शुरू किया, जब उनकी उम्र 92 साल थी। इतनी उम्र में दौड़ने का उनका फैसला सबको हैरान कर गया। उनके इस जुनून की वजह से उन्हें ‘टर्बन्ड टॉरनेडो’ (पगड़ी वाला तूफान) के नाम से जाना जाता था। उनकी बायोग्राफी का टाइटल भी यही है।
100 साल की उम्र में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
फौजा सिंह ने कई मैराथन दौड़ में भाग लिया और अनगिनत रिकॉर्ड अपने नाम किए। वे दुनिया के पहले ऐसे धावक बने, जिन्होंने 100 साल की उम्र पार करने के बाद भी टोरंटो मैराथन पूरी की और 100 प्लस की कैटेगरी में रिकॉर्ड बनाया। इतना ही नहीं फौजा सिंह 2012 के लंदन ओलंपिक में मशालवाहक भी थे।
“टर्बन्ड टॉरनेडो” जीवनी
2011 में उनकी जीवनी “टर्बन्ड टॉरनेडो” ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में लॉन्च हुई। 13 नवंबर, 2003 को, उन्हें नेशनल एथनिक कोएलिशन द्वारा एलिस आइलैंड मेडल ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वो पहले गैर-अमेरिकी बन गए। 2011 में, उन्हें प्राइड ऑफ इंडिया का खिताब भी दिया गया। उन्होंने पीईटीए और ब्रांड लॉरेट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी भागीदारी की और बुजुर्गों के लिए एक मिसाल बने।
दाढ़ी-पगड़ी ने दुनिया में सम्मान बढ़ाया
2013 में, फतेहगढ़ साहिब के एक स्थानीय स्कूल में सम्मानित किए गए फौजा सिंह ने कहा कि उनका एक लक्ष्य सिख संस्कृति की समझ को बढ़ावा देना था। उन्होंने कहा, “मेरी दाढ़ी और मेरी पगड़ी ने दुनिया में मेरा सम्मान बढ़ाया है, और मैं ईश्वर में विश्वास करता हूं, यही कारण है कि मैं जीवन में अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाया।
फौजा सिंह ने 102 वर्ष की उम्र में प्रतिस्पर्धात्मक दौड़ों से संन्यास लिया, लेकिन स्वास्थ्य और समाज सेवा के लिए दौड़ते रहे। उनकी फिटनेस, अनुशासन और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच आज भी हर उम्र के लोगों को प्रेरित करती है।