इंडिया के “ग्रैंड ओल्ड मैन” दादा भाई नौरोजी..जो बने थे ब्रिटेन के पहले एशियाई सांसद

#Dada Bhai Naoroji Jayanti 2023: ‘द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से प्रसिद्ध विचारक, शिक्षाविद् और सामाजिक नेता दादा भाई नौरोजी की आज जयंती है। हमेशा ही राष्ट्रहित के बारे में सोचने वाले दादा भाई नौरोजी ने भारतीयों को इस सच्चाई से वाकिफ करवाया कि भारत में गरीबी आंतरिक कारकों से नहीं, बल्कि अंग्रेजी शासकों की लूट की वजह से है। उन्होंने ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे पहले स्वराज की मांग उठाई। आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है।

11 साल की उम्र में हुई शादी

दादा भाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई के एक गरीब पारसी परिवार में नौरोजी पलांजी डोरडी और मनेखबाई के घर हुआ था। 4 वर्ष की आयु में इनके पिता इस दुनिया को छोड़कर चल बसे थे, जिसके बाद मां ने ही इनका पालन-पोषण किया। बाल विवाह की प्रथा के कारण 11 साल की छोटी-सी उम्र में ही इनकी शादी 7 वर्षीय गुलबाई से हुई। इनकी 3 संतानें हुईं।

circa 1870: Indian statesman Dadabhai Naoroji (1825 – 1917). (Photo by Hulton Archive/Getty Images)

अध्यापक के रूप में की शुरुआत

नौरोजी ने शुरुआती शिक्षा तो नेटिव एजुकेशन सोसायटी स्कूल से ली थी, लेकिन बाकी की पढ़ाई इन्होंने मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की थी। इसी संस्थान में अध्यापक के रूप में जीवन आरंभ कर आगे चलकर वहीं वह गणित के प्रोफैसर हुए, जो उन दिनों भारतीयों के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वोच्च पद था।

‘रास्त गफ्तार’ पत्र का संपादन

वह 1855 में कारोबार के लिए इंगलैंड चले गए। इन्होंने कई धार्मिक तथा साहित्य संगठनों यथा ‘स्टूडैंट्स लिटरेरी एंड सांइटिफिक सोसाइटी’ के प्रतिष्ठाता के रूप में अपना विशेष स्थान बनाया। उस समय के समाज सुधारकों के ‘रास्त गफ्तार’ नामक प्रमुख पत्र का संपादन तथा संचालन भी इन्होंने किया।

भारत-इंग्लैंड में एक साथ परीक्षा चलाने का प्रस्ताव

उन दिनों भारतीय सिविल सेवाओं में सम्मिलित होने के इच्छुक अभ्यर्थियों के लिए बड़ी कठिनाई की बात यह थी कि उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में ब्रिटिश अभ्यर्थियों से स्पर्धा करनी पड़ती थी। इस असुविधा को दूर करने के लिए दादा भाई ने इंगलैंड और भारत में एक साथ सिविल सर्विस परीक्षा करवाने का सुझाव दिया और इसके लिए इंगलैंड के हाऊस ऑफ कॉमन्स में उस सदन के एक सदस्य के रूप में संघर्ष और 1893 तक आंदोलन चलाया, जो स्वीकार कर लिया गया।

ग़रीबी और ब्रिटिशों के राज के बिना भारत नामक किताब लिखी

1939 में पहली बार नौरोजी की जीवनी लिखने वाले आरपी मसानी ने ज़िक्र किया है कि नौरोजी के बारे में 70 हज़ार से अधिक दस्तावेज थे जिनका संग्रह ठीक ढंग से नहीं किया गया। नौरोजी गोपाल कृष्ण और महात्मा गांधी के गुरु थे। नौरोजी सबसे पहले इस बात को दुनिया के सामने लाए कि ब्रिटिश सरकार किस प्रकार भारतीय धन को अपने यहां ले जा रही है। उन्होंने ग़रीबी और ब्रिटिशों के राज के बिना भारत नामक किताब लिखी।

 पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद बने

भारत वापस आने के बाद दादा भाई नौरोजी ने 1885 से 1888 के बीच मुंबई की विधान परिषद के सदस्य के रूप में भी काम किया था और वहीं 1886 इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। इसके बाद 1893 और 1906 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1892 में इन्होंने लन्दन में हुए आम चुनाव में लिबरल पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ा और पहले ब्रिटिश भारतीय सांसद के तौर पर चुने गए। एओ ह्यूम और दिनशा एडुलजी वाचा के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का श्रेय उन्हें जाता है।

बड़ौदा के प्रधानमंत्री

लार्ड सैलसिबरी ने उन्हें ब्लैक मैन कहा था। हालांकि वह बहुत गोरे थे। उन्होंने संसद में बाइबिल से शपथ लेने से इंकार कर दिया था। अंग्रेज़ों की कारस्तानियों को बयान करने के लिए उन्होंने एक पत्र रस्त गोतार शुरू किया जिसे सच बातों को कहने वाला पत्र कहा जाता था। वर्ष 1874 में वह बड़ौदा के प्रधानमंत्री बने और तब वे तत्कालीन बंबई के लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य चुने गये। उन्होंने मुंबई में इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की जिसका बाद में कांग्रेस में विलय कर दिया गया।

 पहली बार स्वराज्य की मांग उठाई

इन्होंने ही पहली बार स्वराज्य की मांग उठाते हुए ब्रिटिश शासन से कहा कि हम न्याय, स्वशासन चाहते है। 1905 में उन्होंने कहा था कि ‘भारत से धन की निकासी सभी बुराइयों की जड़ है, और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण भी है।’ 30 जून, 1917 को 91 साल की उम्र में मुम्बई में उनका निधन हो गया।