Jayanti: सादगी की प्रतिमूर्ति थे भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत

Govind Ballabh Pant Jayanti 2023 : सादगी के साथ जो लोग राजनीति के उंचे शिखर पर पहुंच जाते हैं, उन्हें लोग हमेशा याद रखते हैं। इसी सादगी की प्रतिमूर्ति थे भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत। वर्तमान भारत के मौजूदा स्वरूप के लिए उन्होंने बड़ा योगदान दिया है। वे भारतीय आंदोलनों में भाग लेने वाले सबसे प्रसिद्ध चेहरा थे। उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत के चौथे गृह मंत्री के रूप में उन्होंने कई महत्वपूर्ण विकास कार्य किए। आजादी के पश्चात भाषा के आधार पर राज्यों के विभाजन में उनका अहम योगदान रहा है। इसके साथ ही हिंदी भाषा को देश की राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए सबसे पहली बार उन्होंने पहल की थी। देश के एक अमर स्वतंत्रता सेनानी और वरिष्ठ राजनेता पंडित गोविंद बल्लभ पंत के सम्मान में हर वर्ष 10 सितंबर को उनकी जयंती मनाई जाती है।

गोविन्द बल्लभ पंत का जन्म व प्रारंभिक जीवन

पंडित गोविंद बल्लभ पंत का जन्म अल्मोड़ा के ‘खूंट’ गांव में 10 सितंबर 1887 को हुआ था। एक महाराष्ट्रीयन मूल के ब्राह्मण परिवार में गोविंद बल्लभ पंत ने जन्म लिया था। उनके पिता का नाम ‘मनोरथ पंत’ और माता का नाम ‘गोविंदी बाई’ था। गोविंद जी के जन्म के कुछ सालों बाद उनके माता-पिता पौड़ी गढ़वाल रहने के लिए चले गए। जिसके पश्चात् वे अपनी मौसी ‘धनीदेवी’ के यहां रहने लगे। 1899 में 12 साल की छोटी आयु में उनका विवाह पंडित ‘बालादत्त जोशी’ की पुत्री ‘गंगा देवी’ से हुआ।

गोविन्द बल्लभ पंत की शिक्षा

अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोविंद बल्लभ पंत ने माता पिता के छत्रछाया में ही पूरी की। गोविंद जी को गणित, साहित्य और राजनीति जैसे विषयों में विशेष रूचि थी। बचपन से ही बल्लभ पंत पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार और हमेशा अपनी क्लास में सभी शिक्षकों के प्रिय भी रहे। साल 1907 में उन्होंने स्नातक किया था। जिसके बाद 1909 में गोविंद जी ने कानून की डिग्री ली।

काशीपुर में “प्रेमसभा” का गठन किया

अध्ययन करने के साथ-साथ गोविंद जी कांग्रेस के स्वयंसेवक गुट से भी मिले, इसके पश्चात इसके कार्यों में अपना योगदान देने लगे। कॉलेज की तरफ से उन्हें “लैम्सडेन अवार्ड” प्रदान किया गया। 1910 में पुनः अल्मोड़ा जाकर उन्होंने वकालत शुरू कर दिया। इसी सिलसिले में वह रानीखेत जाने के बाद काशीपुर में भी गए। काशीपुर में गोविंद बल्लभ पंत ने एक स्थानीय संस्था “प्रेमसभा” का गठन किया, जिसके माध्यम से वे शिक्षा व साहित्य के प्रति लोगों को जागरूक करते थे।

स्वतंत्रता संग्राम में गोविन्द बल्लभ पंत का योगदान

गोविंद बल्लभ पंत के विद्यार्थी जीवन में महात्मा गांधी और अन्य लोगों के कार्यों का बड़ा प्रभाव पड़ा। कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर दिसंबर 1921 में उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। साल 1930 में “दांडी मार्च” में हिस्सा लेकर पंत जी ने आंदोलन को गति प्रदान की थी। जिसके बाद उन्हें और कई आंदोलनकारियों को कैद कर लिया गया था। उसी दरमियान वे नैनीताल से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए ‘स्वराजवादी पार्टी’ के उम्मीदवार चुने गए। उम्मीदवार के पद पर रहते हुए, उन्होंने कई पक्षपात और अन्याय पूर्ण प्रचलित प्रथाओं को समाप्त करने के उद्देश्य से कार्य किया।

तीन सालों तक जेल में रहे बंद

साल 1942 में भारत छोड़ो प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के कारण गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार कर लिया गया था। 1945 तक वे और कई अन्य कांग्रेस समिति के सदस्य अहमदनगर किले में पूरे तीन सालों तक जेल में बंद रहे। जिसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपने स्वास्थ्य के खराब होने के झूठे बहाने पर पंत जी को जेल से छुड़वाने में सफलता मिली।

उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री

आजाद भारत में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के रूप में गोविंद बल्लभ पंत जी को चुना गया। उन्होंने साल 1946 से लेकर 1954 तक पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने प्रदेश में कई सुधार कार्य करवाएं। पुराने समय से चली आ रही जमींदारी प्रथा का उन्मूलन भी पंत जी के प्रयासों का ही परिणाम है। भारत सरकार के सबसे बड़े पदों में से एक गृह मंत्री के पद पर साल 1955 से लेकर 1961 तक गोविंद बल्लभ पंत जी ने अपना योगदान दिया। सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के पश्चात उन्हें गृह मंत्री के पद के लिए चुना गया था।

हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने की पहल

देश में जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए पंत जी ने कई सुधार कार्य किए थे। पद पर रहते हुए उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने के लिए कड़े प्रयास भी किए थे। गोविंद बल्लभ पंत ने शिक्षा के प्रति जनता में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई योजनाएं लाये। साथ ही उन्होंने किसानों के दिक्कतों पर मुख्य रुप से ध्यान दिया और अस्पृश्यता और पक्षपात जैसे रूढ़ीवादी प्रथाओं के उन्मूलन को दिशा देने का कार्य किया था।

1957 में “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया

देश के लिए समर्पित होने की भावना के साथ कला, साहित्य, सार्वजनिक सेवा, खेल और विज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय विकास को प्रोत्साहन देने के लिए साल 1957 में गोविंद बल्लभ पंत को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। भारत सरकार में जब गोविंद बल्लभ पंत जी केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में कार्यरत थे, उस दरमियान उनकी तबीयत अक्सर खराब रहती थी। 7 मार्च 1961 के दिन हार्टअटैक के कारण गोविंद बल्लभ पंत जी का निधन हो गया।

पंडित गोविन्द बल्लभ स्मारक और संस्थान

  • गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय यह भारत का पहला कृषि विश्वविद्यालय है, जिसका उद्घाटन साल 1960 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था। यह विश्वविद्यालय उत्तराखण्ड के उधमसिंहनगर जिले में पंतनगर नामक परिसर-कस्बे में स्थित है। हरित क्रांति का अग्रदूत माना जाने वाला यह विश्वविद्यालय पंडित गोविन्द बल्लभ को समर्पित है।
  • गोविन्द बल्लभ पंत अभियान्त्रिकी महाविद्यालय उत्तराखण्ड में आया एक उच्च तकनीकी शिक्षा संस्थान है, जिसे उत्तराखण्ड सरकार संचालित करती है। इसकी स्थापना 1989 में गोविन्द बल्लभ पंत के सम्मान में की गई थी।
  • गोविन्द बल्लभ पंत सागर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में स्थित बाँध है, जिसका नाम गोविन्द बल्लभ पंत के नाम पर रखा गया है।
  • नई दिल्ली के पंडित पंत मार्ग पर गोविंद बल्लभ पंत के प्रतिमा का अनावरण किया गया है, जो पहले रायसीना रोड सर्कल के समीप स्थित थी। भारत सरकार द्वारा निर्मित किया जा रहा नया संसद भवन के संरचना के अंदर यह मूर्ति आ रही थी, इसलिए उनकी प्रतिमा को स्थानांतरित किया गया है।