Indian Navy Marine Commandos: अरब सागर में सोमालिया के तट पर अगवा किए गए जहाज से 15 भारतीयों को बचाकर भारतीय नौसेना के समुद्री कमांडो ‘मार्कोस’ ने फिर अपनी ताकत का लोहा मनवा लिया है। यह समुद्र के रखवाले अब तक कई खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम दे चुके हैं। इसमें 26/11 मुंबई हमले का ऑपरेशन भी शामिल है। तो जानिए मरीन कमांडो फोर्स मार्कोज के बारे में सबकुछ………
MARCOS Commandos Indian Navy: भारतीय नौसेना के समुद्री कमांडो ‘मार्कोस’ ने उत्तरी अरब सागर में लाइबेरिया के ध्वज वाले अपहृत वाणिज्यिक जहाज एमवी लीला नॉरफोक में सवार 15 भारतीयों सहित चालक दल के सभी 21 सदस्यों को बचा लिया। इस जहाज को कुछ हथियारबंद समुद्री डकैतों ने अगवा कर लिया था। मगर भारतीय नौसेना ने भारतीय नागरिकों को बचाने के लिए एक युद्धपोत आईएनएस चेन्नई, समुद्री गश्ती विमान, हेलीकॉप्टर और पी-8आई और लंबी दूरी के विमान और प्रीडेटर एमक्यू9बी ड्रोन तैनात किए थे। इन सबके अलावा नौसेना ने पूरे जहाज को कब्जे से छुड़ाने के लिए अपनी इलीट मार्कोज टीम को भी उतारा और अहम भूमिका निभाकर मौत के मुंह से सभी लोगों को बचा लिया। ऐसे में यह जानना अहम है कि मार्कोज कमांडो आखिर हैं कौन?
कौन हैं मार्कोज?
दरअसल, मार्कोस कमांडो को समंदर का सिकंदर भी कहा जाता है। पानी में मौत को मात देने में इस कमांडो को महारथ हासिल है। इनके कारनामों की वजह से इन्हें चलता-फिरता प्रेत भी कहा जाता है। मार्कोस कमांडो भारतीय नौसेना की खास यूनिट है, जिन्हें पानी में दुश्मनों से लड़ने में महारथ हासिल है। वैसे तो इन्हें मार्कोस कहा जाता है, मगर आधिकारिक तौर पर इन्हें मरीन कमांडो फोर्स (MCF) कहा जाता है। पानी में स्पेशल ऑपेरशन्स के लिए ही इन्हें ट्रेंड किया जाता है।
कब अस्तित्व में आया मार्कोस कमांडो
भारतीय नौसेना में 1987 में इलीट कमांडो फोर्स मार्कोज का गठन हुआ था। यह सुरक्षाबल देश के अग्रिम सुरक्षाबल नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी), वायुसेना की गरुड़ और थलसेना की पैरा स्पेशल फोर्स की तर्ज पर गठित किए गए। मार्कोज या मरीन कमांडो फोर्स में नौसेना के उन सैनिकों से बना बल है, जिनकी ट्रेनिंग सबसे कठिन होती है। मार्कोज के काम करने का तरीका बिल्कुल अमेरिका की इलीट नेवी सील्स जैसा है, जिसने समुद्र में पाइरेसी की कई कोशिशों को नाकाम किया है।
कैसे चुने जाते हैं मार्कोज कमांडो?
पहला चरण- इस इलीट कमांडो फोर्स में चयन इतना आसान नहीं है। इसमें भारतीय नौसेना में काम कर रहे उन युवाओं को लिया जाता है, जो बेहद मुश्किल हालात में खुद को साबित कर चुके हों।बताया जाता है कि चयन के दौरान जवानों की पहचान के लिए जो टेस्ट होते हैं, 80 फीसदी से ज्यादा उसी दौरान बाहर हो जाते हैं।
दूसरा चरण- इसके बाद सेकंड राउंड में 10 हफ्तों का टेस्ट होता है, जिसे इनिशियल क्वालिफिकेशन ट्रेनिंग कहते हैं। इसमें ट्रेनी को रात जागने, बगैर खाए-पिए कई दिनों तक अभियान में जुटे रहने लायक ताकत हासिल करने का प्रशिक्षण मिलता है। सैनिकों को लगातार कई दिनों तक महज दो-तीन घंटों की नींद लेते हुए काम करना पड़ता है। पहली स्क्रीनिंग को पार करने वाले 20 फीसदी लोगों में से अधिकतर इस इन टेस्ट में ही थककर बाहर हो जाते हैं। मजेदार बात यह है कि जो बचते हैं, उनकी आगे और खतरनाक ट्रेनिंग होती है।
तीसरा चरण- इसके बाद समय आता है एडवांस ट्रेनिंग का। पहली दो स्टेज के बाद बचे-खुचे कुछ नौसैनिकों को ही इस चरण में मौका मिलता है। यह ट्रेनिंग तीन साल तक चलती है। इस दौरान जवानों को हथियारों-खाने पीने के बोझ के साथ पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग, आसमान-जमीन और पानी में दुश्मनों का सफाया करने का प्रशिक्षण और दलदल जैसी जगहों पर भी भागने की ट्रेनिंग दी जाती है।
चौथा चरण- ट्रेनिंग के दौरान जवानों को अत्याधुनिक हथियारों को चलाना सिखाया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें तलवारबाजी और धनुष-बाण जैसे पारंपरिक हथियारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। मार्कोज के लिए कमांडो को विषम से विषम परिस्थिति में केंद्रित रहना सिखाया जाता है। इन जवानों को टॉर्चर झेलने से लेकर साथी नौसैनिकों की मौत के दौरान मिशन की कामयाबी सुनिश्चित करने के लिए मानसिक रूप से मजबूत बनाया जाता है।
ये है सबसे कठिन प्रशिक्षण
इस दौरान जवानों को जो सबसे कठिन प्रशिक्षण दिया जाता है, उसका नाम है हालो और हाहो ट्रेनिंग। हालो कद के तहत कमांडो को करीब 11 किलोमीटर की ऊंचाई से कूदना होता है। वहीं, हाहो में जवान आठ किलोमीटर की ऊंचाई से कूदते हैं। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को कूद से सिर्फ आठ सेकंड बाद ही पैराशूट खोलना होता है। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को हर तरह से मजबूत बनाया जाता है और उन्हें यह सिखाया जाता है कि कैसे मौत के जबड़े से जिंदगी को छीनना है। इन्हें केवल इंडियन नेवी ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश और अमेरिकी नेवी के ट्रेनरों से भी ट्रेनिंग दिलवाई जाती है।
किस तरह के मिशन को देते हैं अंजाम?
नौसेना की इस स्पेशल टुकड़ी का मकसद कांउटर टेररिज्म, किसी जगह का खास निरीक्षण, अनकंवेंशनल वॉरफेयर जैसे केमिकल-बायोलॉजिकल अटैक, बंधकों को छुड़ाना, जवानों को बचाना और इस तरह के खास ऑपरेशनों को पूरा करना है। समुद्र में डकैती, समुद्री घुसपैठ और हवाई जहाज की हाईजैकिंग तक के लिए मार्कोज के जवान ट्रेन किए जाते हैं। इस फोर्स की सबसे खतरनाक बात होती है इनकी खुफिया पहचान। यानी नौसेना के आम ऑपरेशन के अलावा ये जवान गुपचुप तरीके से विशेष अभियानों का हिस्सा बनते हैं।
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किन-किन मिशन में ले चुके हैं हिस्सा
मार्कोज का नारा है- द फ्यू, द फियरलेस है। इस इलीट फोर्स के नाम ऑपरेशन कैक्टस, लीच, पवन और चक्रवात के खतरों से निपटने के कई उपलब्धियां हैं। ऑपरेशन कैक्टस के तहत मार्कोज ने मालदीव में रातोंरात तख्तापलट की कोशिशों को रोक दिया था। इस दौरान इस फोर्स ने आम लोगों के साथ बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाया था। भारत में मुख्यधारा में इस फोर्स की चर्चा 26/11 मुंबई हमलों के बाद शुरू हुई, जब इस फोर्स ने ताज होटल से आतंकियों के सफाए में मदद के लिए ऑपरेशन ब्लैक टॉरनेटो शुरू किया था। इतना ही नहीं इस इलीट फोर्स ने 1980 के दौर में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान ऑपरेशन पवन चलाया था, जिसके जरिए लिट्टे के कब्जे वाले कई क्षेत्रों को छुड़ाने में मदद मिली थी। इसके अलावा, केदारनाथ आपदा के दौरान भी इस कमांडो को देखा गया था। साल 2014 में जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी इन कमांडोज ने अपना ताकत का परिचय दिया था।