हिंदी साहित्य जगत में छायावाद के चार अग्रदूतों में एक थी आधुनिक युग की ‘मीरा’

मैं नीर भरी दुख की बदली

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली

तो सहज भरोसा नहीं होता


Mahadevi Verma death anniversary 2023: यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि महादेवी वर्मा के उल्लेख के बिना हिंदी साहित्य जगत अधूरा रहेगा। हिंदी कविता में छायावाद के चार अग्रदूतों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित, महादेवी वर्मा पहली भारतीय कवयित्रियों में से थीं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण के प्रासंगिक मुद्दे को न केवल छूने, बल्कि विस्तार से संबोधित करने का साहस किया। आज उनकी पुण्यतिथि है। तो चलिए जानते हैं उनके जीवन के बारे में…………..

आधुनिक युग की ‘मीरा’ थी महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा विलक्षण प्रतिभा की धनी कवयित्री थी  और उससे भी कहीं अधिक मानवीय रूप में ‘देवी’।  महादेवी यों ही उनका नाम नहीं था। हिंदी साहित्य के महान कवि निराला महादेवी को ‘सरस्वती’ नाम से पुकारते थे।  उन्हें आधुनिक युग की ‘मीरा’ भी कहा जाता है।

विरासत में मिला शिक्षा और साहित्य प्रेम

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च साल 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। महादेवी वर्मा को शिक्षा और साहित्य प्रेम एक तरह से विरासत में मिला था। उनके पिता भागलपुर के एक कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, उन्हेंने ही पश्चिमी शिक्षाओं और अंग्रेजी साहित्य से परिचित कराया। वहीं उनकी मां ने उनमें हिंदी और संस्कृत साहित्य के प्रति स्वाभाविक रुचि पैदा की।

सात साल की उम्र में लिखी पहली कविता

अनुकूल माहौल और साहित्य से भरपूर माहौल में पली-बढ़ी युवा महादेवी वर्मा में बहुत कम उम्र में ही लिखने का जुनून पैदा हो गया। हालाँकि उन्होंने अपनी पहली कविता सात साल की उम्र में लिखी थी, लेकिन वह अपनी कविता और अन्य लेखन को छिपाकर रखती थीं। जब उनकी मित्र सुभद्रा कुमारी चौहान को उनके लेखन के भंडार का पता चला, तभी उनकी प्रतिभा सामने आई।

नौ साल की उम्र में हुई शादी

महादेवी वर्मा की रचनाएँ महिलाओं को सशक्त बनाने और उस समय व्याप्त लैंगिक असमानता के खिलाफ लड़ने की आवश्यकता के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। हालांकि उनकी शादी नौ साल की छोटी उम्र में डॉ स्वरूप नारायण वर्मा से हो गई थी, फिर भी उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद के क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज में जारी रखी और जब तक उन्होंने मैट्रिक पास किया, तब तक वह साहित्यिक क्षेत्र में अपना नाम कमा चुकी थीं।

महिला सशक्तिकरण का प्रतीक

महादेवी ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से संस्कृत में उच्च शिक्षा हासिल की। उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनीं और आजीवन वहीं रहीं । जब महिलाओं के अधिकारों की बात आती थी तो महादेवी वर्मा बेहद स्वतंत्र और स्वतंत्र विचारों वाली थीं। 1930 के दशक में, महादेवी वर्मा ने चांद जैसी पत्रिकाओं के लिए महिलाओं के उत्पीड़न पर सशक्त निबंधों की एक श्रृंखला लिखी, जिन्हें बाद में ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ नामक निबंधों की एक श्रृंखला में संकलित किया गया। यह खंड 1942 में प्रकाशित हुआ था। इससे कई साल पहले फ्रांसीसी महिला सिमोन डी बेवॉयर ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक ‘द सेकेंड सेक्स’ (1949) में नारीवाद की अवधारणा की वकालत की थी।

महात्मा बुद्ध से बेहद प्रभावित रही महादेवी वर्मा

निजी जीवन में महादेवी वर्मा महात्मा बुद्ध से बेहद प्रभावित रहीं। उनकी रचनाओं में करुणा और संवेदना का भाव वहीं से आता है। बुद्ध का सूत्र ‘जीवन दुख दुख का मूल है’ हमेशा उनकी कविताओं में प्रतिबिंबित होता रहा। एक समय वह अपनी घर-गृहस्थी छोड़ संन्यासी बनने की ओर अग्रसर हो गईं। इस दौरान महादेवी की मुलाकात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से हो गई। गांधी जी ने महादेवी को साहित्य साधना करते रहने की सलाह दी। महादेवी रुक गईं और इस तरह हिंदी साहित्य उनकी महान रचनाओं से समृद्ध हुआ।

महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचनाएं 

उनकी काव्य रचनाओं में रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, दीपशिखा, अग्निरेखा, प्रथम आयाम, सप्तपर्णा, यामा, आत्मिका, दीपगीत, नीलाम्बरा और सन्धिनी आदि शामिल हैं। आधुनिक हिंदी कविता में महादेवी वर्मा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरीं। उनकी गद्य कृतियों में मेरा परिवार, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथी, शृंखला की कड़ियां और अतीत के चलचित्र आदि शामिल हैं। उनकी सबसे प्रिय कृतियों में से एक, बच्चों के बीच भी पसंदीदा लघु कहानी ‘गिलु’ है , जो एक घायल गिलहरी की कहानी है।

साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप पाने वाली पहली महिला

हिंदी साहित्य में अदि्वतिय योगदान के लिए साल 1988 में मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े सम्मान ‘पद्म विभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। वह यामा के लिए भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा भी सम्मानित हुईं। महादेवी को साल 1979 में साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था। साहित्य अकादमी की फेलो बनने वाली वह पहली महिला थीं। हिंदी साहित्य सम्मलेन की ओर से उन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ सम्मान भी मिला। महादेवी का निधन 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में हुआ। उनकी कविताएं व जीवन आदर्श आज भी प्रेरणा दे रहे है।