अस्तित्व एक पहचान
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में… स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में… पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से… मानों…