Bharatendu Harishchandra Jayanti 2023: नवजागरण की आधार शिला रखने वाले आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र की आज जयंती है। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अंग्रेज सरकार तक को हिला दिया था और भारतीय समाज को भी एक नयी दिशा देने का प्रयास किया था। उनका आर्विभाव ऐसे समय में हुआ था जब भारत की धरती विदेशियों के बूटों तले रौंदी जा रही थी। ऐसे में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य को माध्यम बनाया। रंगमंच को विद्रोह का औजार बनाया। भारतेंदु ने साहित्य में प्रतिरोध की नींव रखी। तो चलिए जानते हैं उनके जीवन के बारे में……….
पांच साल की उम्र में लिखा पहला दोहा
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म काशी में 9 सितम्बर 1850 को हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र अग्रवाल ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। घर के काव्यमय वातावरण का प्रभाव भारतेंदु के जीवन पर पड़ा और पांच साल की उम्र में उन्होनें अपना पहला दोहा लिखा। भारतेंदु ने देश के विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा की और वहां समाज की स्थिति और रीति नीतियों को गहराई से देखा। इस यात्रा का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे जनता के हृदय में उतरकर उसकी आत्मा तक पहुंचे। बचपन में देखे गए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का भी उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था।
नये भारत के निर्माण का स्वप्न
पुस्तक समीक्षा की परम्परा भी भारतेंदु ने शुरू की थी। उनकी पत्रकारिता ने कई मोर्चों पर संघर्ष किया लेकिन फिर भी उनकी पत्रकरिता में नये भारत के निर्माण का स्वप्न था। उन्होनें साहित्यिक लेखन और पत्रकारिता की दृष्टि से कोई भी विषय नहीं छोड़ा था। पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यंग्य विधा का निर्माण किया। हास्य व्यंग्य में बनारसी स्वभाव परिलक्षित होता है।
नाटककार, अभिनेता भी थे भारतेंदु
भारतेंदु नाटककार भी थे, अभिनेता भी थे। उन्होनें तत्कालीन अंग्रेज सरकार के सत्ता प्रतिष्ठान का उपहास करते हुए एक नाटक लिखा ”अंधेर नगरी चौपट राजा।” यह नाटक आज की परिस्थितियों में भी सटीक बैठता है। उन्होनें अपने, ”भारत दुर्दशा” नाटक के प्रारम्भ में समस्त देशवासियों को सम्बोधित करके देश की अवस्था पर आंसू बहाने को आमंत्रित किया।
”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है”
उन्हानें अपने साहित्य में स्त्री शिक्षा का सदा पक्ष लिया। वे अच्छे अनुवादक थे और कुरान का हिंदीं भाषा में अनुवाद किया। उन्होनें धार्मिक रचनाएं भी लिखीं, जिसमें कार्तिक नैमित्तिक कृत्य,कार्तिक की विधि, मार्गषीर्ष महिमा, माघस्नान विधि आदि महत्वपूर्ण है। उनका एक ऐतिहासिक भाषण हरिश्चंद्रचंद्रिका में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था ,”भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है”।
ग्रह नक्षत्रों को देखकर ही करते थे कागजों का प्रयोग
भारतेंदु की एक और बड़ी विशेषता यह थी कि वह लेखन कार्य के दौरान ग्रह नक्षत्रों के अनुसार ही कागजों का प्रयोग करते थे। वे रविवार को गुलाबी कागज ,सोमवार को सफेद कागज,मंगलवार को लाल,बुधवार को हरे ,गुरूवार को पीले,शुक्रवार को फिर सफेद और शनिवार को नीले कागज का प्रयोग करते थे। उन कागजों पर मंत्र भी लिखे रहते थे। वे साहित्यिक विषयों के अतिरिक्त विज्ञान, पुरातत्व, राजनीति और धर्म आदि विषयों पर भी लेखन किया करते थे। 34 साल के अपने जीवनकाल में ही उन्होंने हिंदी साहित्य को ऐसा समृद्ध किया कि पूरा काल उन्हीं के नाम से जाना जाता है।
35 साल की उम्र में निधन
भारतेंदु समस्त राष्ट्रीय चिंतन को आधुनिक परिवेश में लाना चाहते थे। 17 साल की अवस्था में उन्होंने एक पाठशाला खोली जो अब हरिश्चंद्र डिग्री कालेज बन गया है। उन्होनें 75 से अधिक ग्रंथों की रचना की और हिंदी साहित्य को महत्वपूर्ण स्थान दिलाया । यह हमारे देश धर्म और भाषा का दुर्भाग्य रहा कि इतना प्रभावशाली साहित्यकार मात्र 35 साल की उम्र में 6 जनवरी 1885 को दुनिया को अलविदा कह गए।