अनोखा है Nalanda विश्वविद्यालय का इतिहास, इस खिलजी शासक की एक सनक की भेंट चढ़ी सदियों की विरासत, फिर ऐसे हुई दोबारा शुरुआत 

Nalanda University: नालंदा विश्वविद्यालय की गिनती दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में होती है। ना, आलम और दा शब्दों से मिलकर नालंदा बना है, जिसका मतलब ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है। गुप्त काल के दौरान पांचवी सदी में इसका निर्माण किया गया था। इसका इतिहास, शिक्षा के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसकी समृद्धि को दिखाता है। 


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नवीन परिसर का उद्घाटन किया। पीएम मोदी प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के 1600 साल पुराने खंडहर भी गए। करीब 1749 करोड़ रुपये की लागत से बना Nalanda University Campus बिहार राज्य के नालंदा जिले में है। अब नए कैंपस के उद्घाटन के साथ ही इस प्राचीन विश्वविद्यालय के इतिहास की चर्चा हो रही है। दुनिया के पहले आवासीय नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन इतिहास है। इसका जिक्र कई किताबों में किया गया है। इस विश्वविद्यालय में कई महान लोगों ने पढ़ाई की थी। ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज से भी 600 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय बना था। तो आइए जानिए नालंदा के समृद्ध इतिहास, उसके पतन की कहानी और उसके वर्तमान स्वरूप की खासियतों के बारे में…..

नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास

प्राचीन भारत का नालंदा विश्वविद्यालय एक प्रमुख और ऐतिहासिक शिक्षण केंद्र था। यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय है, जहां पर एक ही परिसर में शिक्षक और छात्र रहते थे। गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय की 450 ई. में स्थापना की थी। हर्षवर्धन और पाल शासकों ने भी बाद में इसे संरक्षण दिया। इस विश्वविद्यालय की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसमें 300 कमरे, 7 बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था। पुस्तकालय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं।

10 हजार से अधिक छात्रों को पढ़ाते थे 1500 से अधिक शिक्षक

नालंदा विश्वविद्यालय में किसी समय 10 हजार से ज्यादा छात्र पढ़ते थे। इन छात्रों को पढ़ाने के लिए 1500 से ज्यादा शिक्षक थे। छात्रों का चयन उनकी मेधा पर किया जाता था। सबसे खास बात यह है कि यहां पर शिक्षा, रहना और खाना सभी निःशुल्क था। इसमें भारत ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया जैसे देशों के भी छात्र भी पढ़ने के लिए आते थे।

आर्यभट्ट ने भी यहां पढ़ाया

गणित और खगोल विज्ञान की पढ़ाई में भी नालंदा विश्वविद्यालय ने शोहरत बटोरी। नालंदा विश्वविद्यालय कैसा था, इसका अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि भारतीय गणित के जनक के जाने वाले आर्यभट्ट छठवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रमुख थे। इतिहासकारों के मुताबिक गणित और खगोल विज्ञान की तमाम थ्योरी नालंदा के जरिये ही दुनिया के दूसरे हिस्सों में पहुंची।

चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने नालंदा में की थी शिक्षा ग्रहण 

विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए ज्यादातर एशियाई देशों चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी यहां से शिक्षा ग्रहण की थी। ह्वेनसांग ने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता के बारे में लिखा है। बौद्ध के दो सबसे अहम केंद्रों में से यह एक था। यह प्राचीन भारत के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार के योगदान को दर्शाता है।

ज्ञान का भंडार कहा जाता है नालंदा विश्वविद्यालय

दुनिया में नालंदा विश्वविद्यालय को ज्ञान का भंडार कहा जाता रहा है। इस विश्वविद्यालय में धार्मिक ग्रंथ, लिट्रेचर, थियोलॉजी,लॉजिक, मेडिसिन, फिलोसॉफी, एस्ट्रोनॉमी जैसे कई विषयों की पढ़ाई होती थी। उस समय जिन विषयों की पढ़ाई यहां पर होती थी, वो कहीं भी नहीं पढ़ाए जाते थे। 800 साल तक यह विश्वविद्यालय दुनिया के लिए ज्ञान का मार्ग था। 800 साल की लंबी यात्रा के बाद 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था।

 

खिलजी ने क्यों जला दिया था विश्वविद्यालय ?

नालंदा विश्वविद्यालय में 1193 तक पढ़ाई होती थी। तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला कर दिया। उसने पूरे विश्वविद्यालय को तबाह कर दिया। इतिहासकारों के मुताबिक, खिलजी ने जिस समय विश्वविद्यालय पर हमला किया था, उस समय इसकी नौ मंजिला लाइब्रेरी में करीब 90 लाख किताबें और पांडुलिपियां थीं। लाइब्रेरी में आग लगाने के बाद यह तीन महीने तक जलती रही। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि खिलजी और उसके सैनिकों को लगता था कि इसकी शिक्षाएं इस्लाम के लिए चुनौती हैं। हालांकि, कुछ स्कॉलर इस मान्यता को खारिज करते हैं। यह भी कहा जाता है कि एक बार खिलजी बहुत अधिक बीमार था। उसका इलाज कई तरह से किया गया, जिसे लेकर कई तरह की कहानियां बताई जाती हैं। कहा जाता है कि खिलजी अपने इलाज से खुश नहीं था और गुस्से में उसने इसे जलवा दिया था।

फारसी इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज अपनी किताब ‘तबाकत-ए-नासिरी’ में लिखते हैं कि खिलजी किसी कीमत पर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार नहीं चाहता था। पहले उसने नालंदा विश्वविद्यालय में इस्लाम की शिक्षा का दबाव डाला। फिर हमला कर दिया। उस बर्बर कार्रवाई में पूरा विश्वविद्यालय तबाह हो गया, हजारों विद्वान और बौद्ध भिक्षु मारे गए।

खिलजी से पहले भी दो बार हमले

नालंदा विश्वविद्यालय पर खिलजी ने पहली बार हमला नहीं किया था। इससे पहले पांचवीं शताब्दी में मिहिर कुल की अगुवाई में हूणों ने भी विश्वविद्यालय पर हमला किया, फिर आठवीं शताब्दी में बंगाल के गौड़ राजा ने भी विश्वविद्यालय पर धावा बोला। हालांकि दोनों बार मकसद लूटपाट था। दोनों बार हमले के बाद विश्वविद्यालय की मरम्मत करवा दी गई, पर खिलजी ने नालंदा को खाक में मिला दिया।

किस तरह शुरू हुई स्थाई भवन के आकार लेने की प्रक्रिया?

दरअसल, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय भारत के समृद्ध इतिहास का अमिट दस्तावेज रहा है, जो प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाता था। लेकिन, खिलजी वंश के आक्रमणकारियों ने इसे लूटा, कत्लेआम मचाया और जला डाला। 800 साल के लंबे इंतजार के बाद इसे फिर इसे पुराने स्वरूप में लौटाने की कवायदें हुईं और सरकारों ने इस पर काम किया। 2007 से तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पहल के बाद इसके निर्माण की रूपरेखा बनाई गई थी और बिहार असेंबली में एक विधेयक पास हुआ। नई यूनिवर्सिटी 2014 को अस्थाई रूप से 14 विद्यार्थियों के साथ संचालित होना शुरू हुई। साल 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राजगीर के पिलखी विलेज में नालंदा विवि के स्थाई परिसर की आधारशिला रखी थी। नए परिसर का निर्माण कार्य साल 2017 से प्रारंभ किया गया और पीएम मोदी ने 19 जून 2024 को नए परिसर का उद्घाटन किया।

455 एकड़ में फैले कैंपस की क्या है खासियत?

करीब 455 एकड़ के दायरे में फैला यह कैंपस विश्व का सबसे बड़ा नेट जीरो ग्रीन कैंपस माना जाता है। इसकी इमारतें कुछ इस तकनीक से बनाई गई हैं, जो गर्मी में ठंडी और ठंड के दिनों में गर्म बनी रहती हैं। नए कैंपस में 1 हजार 750 करोड़ रुपये की धनराशि से नए भवनों और अन्य सुविधाओं का निर्माण कराया गया।

ये भी पढ़ें 👉:चॉकलेट का इतिहास हजारों साल पुराना, दिलचस्प है इसकी खट्टी-मिट्ठी यात्रा

नालंदा यूनिवर्सिटी की दो एकेडमिक बिल्डिंग्स हैं। इनमें 40 क्लासरूम्स बनाए गए हैं और 300 सीटों वाला एक एक भव्य आडिटोरियम बनाया गया है। नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस में विशाल लाइब्रेरी, खुद का पावर प्लांट भी है।इस यूनिवर्सिटी में 26 विभिन्न देशों के विद्यार्थी स्टडी कर रहे हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन, डॉक्टरेट रिसर्च कोर्स, शॉर्ट सर्टिफिकेट कोर्स, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए 137 स्कॉलरशिप खास विशेषता है।

नालंदा विश्वविद्यालय को ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडोनेशिया और थाईलैंड सहित 17 अन्य देशों का समर्थन प्राप्त है, जिन्होंने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को 137 छात्रवृत्तियां प्रदान करता है। 2022-24 और 2023-25 के लिए स्नातकोत्तर कार्यक्रमों और 2023-27 के पीएचडी कार्यक्रम में नामांकित अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में अर्जेंटीना, बांग्लादेश, कंबोडिया, घाना, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, श्रीलंका, अमेरिका और जिम्बाब्वे के छात्र शामिल हैं।