Uttarakhand Famous Village : जनपद चमोली का *लुणतरा गाँव* बीते महीने से खूब सुर्खियों में है। दरअसल इन दिनों लुणतरा गांव पांडव नृत्य के आयोजन को लेकर चर्चाओं में है और पिछले महीने गांव भव्य रामलीला मंचन की वजह से भी चर्चाओं में रहा है। पांडव नृत्य जो की गढ़वाल क्षेत्र का एक प्रमुख लोक नृत्य है। स्कंदपुराण के केदारखंड में गढ़वाल में पांडवों के इतिहास का उल्लेख मिलता है। पांडव नृत्य के जरिये से आज भी ग्रामीण पौराणिक संस्कृति को संजोए रखने के लिए पांडव लीला का आयोजन करते हैं ।

आदर्श पांडव नृत्य मंडली ग्राम लुणतरा के अध्यक्ष मोहन सिंह गढ़िया ने बताया कि 5 दिसंबर से इस वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है, और प्रत्येक वर्ष नवंबर के अंतिम सप्ताह या दिसंबर माह में बड़े ही धूमधाम उत्साह के साथ पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है।
पांडव नृत्य मंडली के सचिव गंभीर फरस्वार्ण एवं कोषाध्यक्ष श्री राजू बिष्ट ने बताया कि प्रतिवर्ष गांव में पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है जिसमें पूरे क्षेत्र की विभिन्न गांव से भक्तगण पांडव नृत्य को देखने आते हैं।
लुणतरा पाण्डवों ने 7 दिसंबर को बैराठ भ्रमण किया। इस दौरान गांव के प्रत्येक परिवार के चौक में पहुंचकर पांडव डंगरियों द्वारा प्रत्येक परिवार को आशीर्वाद दिया जाता हैं और गांव की सुख समृद्धि की कामना की जाती है । इसके बाद 8 दिसंबर को पांडवों ने नंदाकिनी व भद्रगंगा के संगम भद्रप्रयाग में स्नान किया।

आखिर क्यों होता है उत्तराखंड में पांडव नृत्य?
उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत में पांडव नृत्य एक ऐसी अनूठी परंपरा है, जो न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि महाभारत की कथाओं को जीवंत रूप में सामने लाने का माध्यम भी है। महाभारत के भीष्म पर्व के अनुसार पांडवों के उत्तराखंड में आने का जिक्र मिलता है और जिन जिन क्षेत्रों में पांडव ने भ्रमण किया था, उन क्षेत्रों में आज भी पांडव नृत्य एवं पांडव लीला का आयोजन होता है । इस पारंपरिक लोकनृत्य के जरिए गांव-गांव में पांडवों की गाथाएं, गीतों, संवादों और नाट्य रूपांतरण के ज़रिए सुनाई जाती हैं। पांडव नृत्य न सिर्फ आस्था से जुड़ा है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को भी पौराणिक संस्कृति से जोड़ने का एक सशक्त जरिया बन चुका है।
पहले जान लेते हैं पांडव कब-कब उत्तराखंड आए ?
महाभारत के विभिन्न पर्वों से ज्ञात होता है कि पांडवों का गढ़वाल क्षेत्र में आगमन हुआ था ।
1. वनवास के दौरान महाभारत के वनपर्व
– पांडव अपने 12 वर्षीय वनवास के दौरान उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में आए। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख है कि पांडव लोमष ऋषि के साथ गंगाद्वार (हरिद्वार) से भृंगतुंग (केदारनाथ) तक के क्षेत्र में भ्रमण करते थे।
– समय: यह द्वापर युग में, महाभारत युद्ध से पहले, पांडवों के वनवास के दौरान (लगभग 3102 ईसा पूर्व, पारंपरिक कालानुक्रम के अनुसार) हुआ।
– स्थान: हरिद्वार, केदारनाथ, और अन्य हिमालयी क्षेत्र।
2. अज्ञातवास के दौरान
– पांडवों ने अपने अज्ञातवास का एक हिस्सा मत्स्य जनपद में बिताया। कुछ स्थानीय कथाओं के अनुसार, उत्तराखंड के पांडवखोली (अल्मोड़ा के पास) जैसे स्थान उनके अज्ञातवास से जुड़े हैं।
– समय: वनवास के बाद 13वें वर्ष में।
– स्थान: पांडवखोली (अल्मोड़ा), और संभवतः अन्य गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र।
3. महाभारत युद्ध के बाद स्वर्गारोहण
– युद्ध के बाद पांडवों ने अपने पापों के प्रायश्चित के लिए भगवान शिव की खोज में उत्तराखंड की केदारघाटी का दौरा किया। इसके बाद, उन्होंने स्वर्ग की यात्रा शुरू की, जो हिमालय के बद्रीनाथ, केदारनाथ, और माणा गांव से होकर गुजरी
चर्चाओं में रही लुणतरा गाँव की भव्य एवं डिजिटल रामलीला
यही नहीं पिछले महीने लुणतरा गाँव रामलीला के भव्य, दिव्य और डिजिटल मंचन के कारण पूरे राज्य भर में चर्चाओं में रहा है।

ग्राम सभा लुणतरा में आदर्श रामलीला मंडली के अध्यक्ष मनोहर सिंह बिष्ट के नेतृत्व में इस वर्ष इस भव्य दिव्य और डिजिटल रामलीला का मंचन संपन्न हुआ। जिसकी तारीफ पूरे राज्य भर में हो रही है। रामलीला मंचन के दौरान भी पूरे राज्य एवं देश के विभिन्न राज्यों से भी मुख्य अतिथि के रूप में राम भक्त आये।
आदर्श रामलीला मंडली के सचिव दिनेश सिंह बिष्ट का कहना है कि लाइव प्रसारण के दौरान उनके गांव की रामलीला को देश-विदेश से लगभग 20 लाख से अधिक भक्तों ने लाइव प्रसारण के माध्यम से देखा । सिंगापुर,दुबई, कनाडा समेत अन्य देश से प्रवासीयो के द्वारा राम भेंट भी अर्पित की गई।

आदर्श गांव लुणतरा :– जनपद चमोली के नंदा नगर विकासखंड का यह गांव भद्रेश्वर पर्वत की तलहटी में लवणेश्वर महादेव की भूमि है । गांव के मध्य भाग में लवणेश्वर महादेव का प्राचीन एवं भव्य मंदिर है। जो कि अपनी विशेष एवं पारंपरिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है । श्रावण माह की प्रत्येक सोमवार को यहां भक्तजन दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं।
