जाने कौन है लोक संस्कृति के महान विभूति जगदीश ढौंडियाल, जिन्हें उपराष्ट्रपति ने किया सम्मानित

उत्तराखंड के चार महान विभूतियां को उपराष्ट्रपति द्वारा उत्तराखंड की विविध लोक सांस्कृतिक विधाओं पर निरंतर कार्य करने हेतु ’अमृत अवार्ड-2022’ संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित किया गया । जिसमें जुगल किशोर पेटशाली चितई अल्मोड़ा को लोग संस्कृत में संपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया। वही पौड़ी गढ़वाल से जगदीश ढौंडियाल को लोक संस्कृति में गायन व नृत्य को लेकर सम्मानित किया गया। भैरव तिवारी हल्द्वानी को लोक रंगमंच रामलीला लोकवाद्यों को लेकर सम्मानित किया गया। जबकि नारायण सिंह बिष्ट चमोली गढ़वाल को लोक संगीत कला के लिए सम्मानित किया गया।

 कौन है जगदीश ढौंडियाल

शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ पंडित जगदीश ढौंडियाल एक ऐसे लोक कलाकार है। जिन्होंने कभी भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं किया।जगदीश ढौंडियाल द्वारा दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरां व कस्बों में विभिन्न सांस्कृतिक दलों के सानिध्य में उत्तराखंड के लोकगायन व लोकसंगीत का संवर्धन कर नाम कमाया गया है।

पंडित जगदीश ढौंडियाल का जन्म

पौड़ी जिले के बीरोखाल ब्लॉक के दिवाली गांव में जन्में पंडित जगदीश ढौंडियाल की शिक्षा दीक्षा दिल्ली हायर सेकेंडरी स्कूल से हुई। उनके पिता का नाम स्वर्गीय संगत राम ढौंडियाल और माता स्वर्गीय परेश्वरी देवी था। उनकी हायर सैकेंड़री तक की शिक्षा दिल्ली में हुई है| उन्होंने सुप्रसिद्ध जयपुर घराने से कत्थक में गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप शिक्षा ग्रहण की है|

सुप्रसिद्ध जयपुर घराने से कत्थक सिखा

पंडित जगदीश ढौंडियाल के गुरु हजारीलाल जी थे| पंडित जी लगभग 5-6 दशक से संगीत साधना में है| उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत लगभग 18 वर्ष तक गुरु आश्रम में कत्थक सिखा। जीवन के शुरुआती दौर में उन्होंने उस विधा को अपनाया जिस पर उस समय में सोचना उत्तराखण्ड के कलाकारों के लिए दूर की कौड़ी था| आज भी कत्थक के क्षेत्र में पेशेवर कलाकार के रूप में उनके समान उत्तराखण्ड से संभवतः कोई नहीं है| वो राग-रागनियों और तालों की विस्तृत जानकारी रखते हैं साथ ही ढ़ोल सागर के भी विद्वत जानकार हैं|

रंगमंच के भी बेहतरीन कलाकार

पंडित जगदीश ढौंडियाल रंगमंच के भी एक बेहतरीन कलाकार है और उनकी इस प्रतिभा का लोहा दुनिया मानती है| 14 साल की उम्र में रामलीला में उनके द्वारा निभाये गये शेषनाग अवतारी लक्ष्मण का अभिनय आज भी उस दौर के लोग बखूबी याद करते हैं| तब “गढ़वाल प्रादेशिक सभा” – अंध विद्यालय पंचकुइयां रोड़ दिल्ली रामलीला मंचन का आयोजन करती थी| इसके अलावा विभिन्न कार्यक्रमों में लास्य तांडव, शिव तांड़व, भैरव तांडव, कृष्ण तांडव(नटवरी नृत्य), हनुमत तांडव नृत्य आदि में पारंगत होने के साथ साथ अभिनय भी करते थे|

‘कामायनी’ के ढ़ाई हजार एपिसोड का निर्देशन

मशहूर दिवंगत अभिनेता देवानंद की फिल्मों के गानों की फरमाइश लोग आज भी उनसे करते हैं| इसके अलावा पंडित जगदीश ढौंडियाल द्वारा हिंदी के सुप्रसिद्ध रचनाकार जयशंकर प्रसाद की कालजयी कृति ‘कामायनी’ के लगभग ढ़ाई हजार एपिसोड का निर्देशन भी किया गया है| गीत एवं नाटक प्रभाव में लगभग 14 वर्ष तक नृत्य निर्देशन किया। उन्होंने इन 60 वर्षों के अनुभव में दूरदर्शन के कई कार्यक्रम किया।

रेखा धस्माना ने दी थी “दर्जी दिदा” गढ़वाली गीत को आवाज

हिंदी व गढ़वाली गीतों के गायन में भी पंडित जगदीश ढौंडियाल को महारत हासिल है| “ दर्जी दिदा “फेम गायिका उत्तराखण्ड की स्वर कोकिला वरिष्ठ गायिका रेखा धस्माना उनियाल ने भी उनके गीतों को अपनी आवाज दी है | उनके कई गढ़वाली गीत उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुए | जिनमें ‘बिजी जावा बिजी हे…. मो री का नारैण’, ‘ऊँचा हिमालै का मूड’ आदि गीत आज भी सुनने वालों को रोमांचित कर देते हैं |

1984 के गणतंत्र दिवस पर “गांव चलो” नृत्य का निर्देशन

1984 के गणतंत्र दिवस पर गांधी दर्शन को नृत्य रूप में 10 कलाकारों की झांकियां “गांव चलो और गांव चलो गांव चलो भाई, शेरों का जीवन या बड़ा दुखदाई है”.. इस नृत्य का निर्देशन भी पंडित जगदीश ढौंडियाल द्वारा किया गया।

प्रतिभा से अब तक अनजान

उत्तराखंड संगीत जगत में चार चांद लगाने वाले पंडित जगदीश ढौंडियाल को रागों की पूरक जानकारी, हारमोनियम सहित कई वाद्ययंत्रों पर पकड़, नृत्य की हर शैली के पारखी वेद सम्मत गूढ़ ज्ञान के धनी, उत्तराखंड की लोक संस्कृति के प्रखर ध्वजवाहक, बहुमुखी कलाओं से परिपूर्ण व कई गरिमामयी पुरुस्कारों से सम्मानित है। हालांकि इतनी प्रतिभा के धनी कलाकार की प्रतिभा से उत्तराखण्ड राज्य सरकार अब तक अनजान है।

75 वर्षों में इन कलाकारों को मिली पहचान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ललित कला के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन के लिये 84 कलाकारों को संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार से सम्मानित किया है। जिसमें उत्तराखंड के लोक संगीत और नृत्य में योगदान के लिए भैरव दत्त तिवारी, जगदीश ढौंडियाल, नारायण सिंह विष्ट, जुगल किशोर पेटशाली को सम्मानित किया गया। बता दें कि यह पुरस्कार 75 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय कलाकारों को सम्मानित करने के लिए गठित किया गया है, जिन्हें अब तक अपने करियर में कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं मिला है।  पुरस्कार समारोह को संबोधित करते हुये उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब इन कलाकारों को उनके काम की पहचान मिल रही है। उन्होंने कहा, ‘‘ये सभी कलाकार वे हैं जिन्हें पिछले 75 वर्षों में कभी भी उनका उचित हक नहीं मिल पाया। उन्हें सम्मान देकर हम भारतीय संस्कृति को सम्मान देते हैं; इससे दुनिया में भारत का गौरव बढ़ता है।’’

चार दिवसीय उत्सव का आयोजन 

पुरस्कार विजेताओं को प्रतिष्ठित ‘ताम्रपत्र’ और ‘अंगवस्त्रम’ के साथ 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार मिला। इस अवसर को संगीत नाटक अकादमी ने अकादमी परिसर में 16 से 20 सितंबर तक चार दिवसीय उत्सव का आयोजन किया, जिसमें सम्मानित पुरस्कार विजेताओं द्वारा प्रदर्शन किया गया। यह त्योहार भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के जीवंत उत्सव के रूप में कार्य करता है, जो उन लोगों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने इस अमूल्य विरासत को संरक्षित करने और प्रचारित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है।

 

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