कौन है जुगल किशोर पेटशाली, जिन्हें राजुला-मालूशाही की अमर प्रेमगाथा से मिली थी पहचान

कत्यूर वंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की कन्या राजुला की अमर प्रेमगाथा राजुला-मालूशाही को दुनिया तक पहुंचाने वाले कुमाऊं के वरिष्ठ रंगकर्मी,  लेखक, साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली को संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया गया है।

जुगल किशोर पेटशाली का जीवन

अल्मोड़ा के चितई के पास पेटशाल गांव में 7 सितंबर 1946 को स्व. हरिदत्त व लक्ष्मी पेटशाली के घर जन्मे जुगल किशोर ने लोक साहित्य, लोक संगीत व लोक नृत्य पर उल्लेखनीय कार्य किया है। वह गुरु रामानंद के सानिध्य में रहे। उन्होंने नौ-दस साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था।

हाईस्कूल में फेल होने पर लिखी पहली कविता

जुगल किशोर पेटशाली ने अपनी पहली कविता हाईस्कूल में असफल होने पर माँ के लिए हास–परिहास में लिखी। ‘मैया मैं तो फेल हो आयो, चार प्रहर कैमस्ट्री रटयो फिर भी खाक न आयो, तू भोली समझेगी मैंने समय बेकार गंवायो। दोष है मैया सभी पिता को नहीं टयूशन लगवायो’। ये सूरदास के भजन मैया मैं नहीं माखन खाओ की पैरोडी रूपांतरण था और तब जीआईसी अल्मोड़ा की पत्रिका में उनकी यह कविता प्रकाशित हुई भी थी। उसके बाद उन्होंने निरंतर लिखना शुरू किया।

राजुला मालूशाही सबसे प्रसिद्ध किताब

पेटशाली की सबसे प्रसिद्ध किताब प्रेम गाथा पर आधारित राजुला मालूशाही  रही, जिसके लिए उन्हें जयशंकर पुरस्कार भी मिला। बाद में राजुला मालूशाही पर उन्होंने फिल्म भी बनाई। वहीं चितई ग्वल देवता पर आधारित ‘जय बाला गोरिया’‘ महाकाव्य भी प्रसिद्ध थी। इसके अलावा उन्होंने उत्तराखंड के लोकगीत, संस्कार गीत, लोक गाथाओं पर कई किताबें लिखीं। ‘उत्तरांचल के लोकवाद्य’ किताब में उन्होंने राज्य के 35 लोकवाद्यों पर लिखा है। राजुला-मालूशाई पर दूरदर्शन एक धारावाहिक प्रसारित कर चुका है।

कुमाऊंनी लोकगाथाओं पर आधारित मेरे नाटक

कुमाऊं की लोकगाथाओं पर आधारित ‘मेरे नाटक‘ पुस्तक में जुगल किशोर पेटशाली के चार नाटक शामिल हैं। नाटकों का काल खंड आज से तीन से पाँच सदी पूर्व का समाज है। कुमाँउनी संस्कृति के गहरे जानकार पेटशाली ने उत्तराखण्ड की राजशाही दौर को इन नाटकों में सजीव किया है।

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इन नाटकों में राजशाही दौर का जिक्र

राजुला-मालूशाही गीत-नाटिका में भोट प्रदेश के शौका व्यापारी सुनपति की बेटी राजुला तथा बैराठ के राजा दुलाशाई के पुत्र मालूशाई के बीच उपजे उद्दात प्रेम का प्रवाह है । बाला गोरिया गीत-नाटिका में गढ़ी चम्पावत के राजा हालराई की सात रानियों की अपराध गाथा है, जहां रानी कालिंगा षड़यंत्रकारी यातनाओं की मार्मिक कथा है। अजुवा-बफौल नाटक में बफौलीकोट के बाईस भाई बफौलों की अदम्य वीरता और उनके नगाड़े की गर्जना राजा भारती चंद और उसकी डोटियाली रानी को बेहद बैचेन कर देती है। नौ-लखा दीवान नाटक में राजा दीपचंद का दीवान सकराम पांडे स्थानीय ग्रामीणों के बीच एक अत्याचारी तथा कल्याण सिंह एक देवतुल्य पुरुष के तौर पर उभरे हैं।

तैयार की कुमाऊंनी भाषा की 34 धुनें

15वीं शताब्दी की अमर प्रेम कहानी को पेटशाली ने कुमाऊंनी भाषा की 34 लोक धुनों पर तैयार किया गया। इसमें छपेली, चांचरी, झोड़ा, बैर, भगनौल, न्योली, जागर आदि प्रमुख हैं। इससे पता चलता है कि पेटशाली लोक के कितने नजदीक हैं।

18 पुस्तकें लिख चुके हैं अब तक

पेटशाली आज कुमाउनी साहित्य व संस्कृति के मर्मज्ञ ज्ञाता के रूप में स्थापित हैं। उन्होंने आसपास की लोक कलाओं और लोकगाथाओं को अपनी प्राथमिकता में शामिल किया। वह हिंदी और कुमाऊंनी में अब तक 18 पुस्तकें लिख चुके हैं।

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पेटशाली की प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें

जुगल किशोर पेटशाली की प्रमुख पुस्तकों में राजुला मालूशाही (महाकाव्य), जय बाला गोरिया, कुमाऊं के संस्कार गीत, बखत– कुमाउनी कविता संग्रह, उत्तरांचल के लोक वाद्य, कुमाउनी लोकगीत, पिंगला भृतहरि (महाकाव्य), कुमाऊनी लोकगाथाएं, गोरी प्यारो लागो तेरो झनकारो (कुमाउनी होली गीत संग्रह) आदि कई सम्पादित पुस्तकें शामिल हैं।

कई पुरस्कार से सम्मानित

लोककवि जुगल किशोर पेटशाली जय शंकर प्रसाद पुरस्कार, सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार, (उ.प्र. हिन्दी संस्थान), उत्तराखण्ड सरकार के वरिष्ठ संस्कृति कर्मी पुरस्कार और कुमाऊं गौरव पुरस्कार से भी सम्मानित हैं।