यहां के 28 गांव होली के दिन मनाते हैं शोक, 700 साल से चली आ रही परंपरा, जानें इसकी वजह

Holi: रंगों के पर्व होली के त्यौहार पर एक ओर जहां सभी रंगों से सराबोर मस्ती में झूमते हैं। तो वहीं डलमऊ क्षेत्र के 28 गांव इस दिन सूनसान पड़ जाते हैं। यह परंपरा लगभग 700 वर्ष से आज भी चली आ रही है।


होली का दिन खुशियों का होता है। लोग एक दूसरे को रंग लगाकर उत्सव मनाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के रायबरेली का एक इलाका ऐसा भी है जहां होली के दिन लोग मातम मनाते हैं। इतना ही नहीं इस दिन महिलाएं कोई श्रृंगार भी नहीं करती। यह शोक की परंपरा आज भी लगभग 700 वर्ष से चली आ रही है। तो आईये जानते क्या है इसके पीछे की वजह..

होली पर डलमऊ के 28 गांवों में रहता है शोक

रायबरेली जनपद के डलमऊ क्षेत्र में होली के त्यौहार वाले दिन लोग शोक मनाते हैं। होली के दिन डलमऊ तहसील क्षेत्र के 28 गांव सूनसान पड़ जाते हैं। लोग यहां होली वाले दिन रंगों से खेलने के बजाय शोक मनाते हैं इसकी वजह 700 वर्ष पहले घटित हुई घटना है।

ये हैं कहानी..

बताया जाता है कि डलमऊ के राजा डल देव एक बार गंगा नदी में नौका विहार कर रहे थे, तो उसी समय जौनपुर के मुगल शासक शाहशर्की की पुत्री सलमा भी नदी में नौका विहार करने आई हुई थी। उसी दौरान महाराज डलदेव को सलमा से मोहब्बत हो गई। लेकिन यह बात मुगल शासक को नागवारा गुजरी।

इस बात का बदला लेने के लिए उसने कई बार डलमऊ किले पर आक्रमण किया, लेकिन वह असफल रहा। उसके बाद उसने मानिकपुर के राजा माणिक चंद्र से भेद नीति के तहत राजा डल देव को युद्ध में पराजित करने के लिए गुप्त जानकारी ली, तो उन्होंने बताया कि होली वाले दिन राजा डल देव अपनी प्रजा व सेना के साथ जश्न मानते हैं। इस दिन आक्रमण करने पर आप इन पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।

होली के दिन हुई थी राजा की हत्या 

राजा डालदेव होली बहुत धूमधाम से मनाते थे। इस दिन उनके सैनिक भी अपने हथियारों को रखकर जश्न में डूबे रहते थे। इसी का फायदा इब्राहिम शाह शर्की ने उठाया और होली के दिन डलमऊ पर आक्रमण कर दिया। मुगल सेना का सामना करने के लिए राजा डल देव भी अपने 200 सैनिकों के साथ युद्ध में कूद पड़े। मुगल शासकों की 2000 सेना का डटकर मुकाबला किया, लेकिन अपनी प्रजा की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया।

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महिलाएं इस दिन नहीं करती श्रृंगार

सदियां गुजर गई लेकिन डलमऊ तहसील क्षेत्र के 28 गांवों में होली आते ही इस घटना की यादें ताजा हो जाती हैं। जिस कारण इस दिन सभी लोग अपने राजा की मौत पर शोक मनाते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। महिलाएं भी इस दिन श्रृंगार नहीं करती।

तीन दिन बाद लोग मानते हैं होली

बता दें कि राजा डलदेव के नाम से ही डलमऊ क्षेत्र बसा है।इतिहासकार बताते है कि डलमऊ तहसील क्षेत्र के मुर्शिदाबाद, नाथखेड़ा, पूरे नाथू, पूरे गडरियन नेवाजगंज सहित 28 गांव में होलिका उत्सव का त्योहार होली वाले दिन नहीं मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन डलमऊ नगरी के संस्थापक महाराज डल देव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे। ऐसा नहीं है कि यहां होली नहीं खेली जाती है, लेकिन रंगों का ये त्योहार तीन दिन बाद बड़ी ही सादगी के साथ डलमऊ के 28 गांवों में मनाया जाता है।