आजादी के 75साल बाद भी देवभूमि में ब्रिटिश काल से पोषित संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय अन्य विद्यालयों के समकक्ष मुख्य धारा में आने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
(Existence of Sanskrit education in danger in Uttarakhand) देहरादून। उत्तराखंड में संस्कृत को दूसरी राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद भी संस्कृत महाविद्यालयों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। आजादी के 75साल बाद भी देवभूमि में ब्रिटिश काल से पोषित संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय अन्य विद्यालयों के समकक्ष मुख्य धारा में आने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस को लेकर संस्कृत विद्यालय-महाविद्यालय शिक्षक संघ ने प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संस्कृत शिक्षा मंत्री, कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय और निदेशक संस्कृत शिक्षा को ज्ञापन भेजा।
महाविद्यालय के पदाधिकारियों ने भेजा ज्ञापन
इस संबंध में महाविद्यालय के पदाधिकारियों ने शनिवार को प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता कर मीडिया के सामने अपनी समस्याएं रखीं। उन्होंने ज्ञापन में कहा कि सनातन संस्कृति को बचाने वाली भाजपा के कार्यकाल में ही इन संस्थानों का स्तर घटा दिया गया है। पांच दशकों से कोई नया पद सृजित नहीं हुआ है। कक्षा 6 से स्नातकोत्तर तक महज दो से तीन पद सृजित है जबकि सैकड़ों छात्र इन महाविद्यालयों में अध्ययनरत है।
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ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड संस्कृत शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण समस्याएं और जटिल होती जा रही है, जो शिक्षक जिस पद में सेवा पर आया हुआ है, उसी पद से सेवानिवृत्त हो जाता है और तमाम शिक्षक निम्न मानदेय पर काम कर रहे हैं। सैकड़ों शिक्षकों के भविष्य के लिए कोई ढांचागत सुविधा नहीं है।
छह मांगे…
एसोसिएशन द्वारा छह मांगे मांगी गई है, जिनमें 16 एवं 23 अक्टूबर के आदेश को स्थगित करते हुए 17 फरवरी 2021 और 31 वर्गीकृत महाविद्यालयों के इतर सभी शेष सभी संस्कृत विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों को मान्यता पूर्व की भांति रखी गई। 31 संस्कृत महाविद्यालयों में से 18 महाविद्यालयों में परिनियमावली के तहत शासनादेश निर्गत करने के स्थान पर पृथक नियमावली बनाई जाए। 155 शिक्षकों को योग्यतानुरूप समायोजित किया जाए एवं 126 प्रबंधकीय शिक्षकों को तत्काल मानदेय दिया जाए। प्रत्येक शासकीय, अशासकीय विभाग संस्कृत अनुवादक के पद बनाए तथा पदों के अनुरूप पद सृजित किए जाएं।