उत्तरकाशी सुरंग हादसे में फंसे 40 मजदूरों को निकालने की कोशिश जारी है। इस हादसे ने थाईलैंड में 5 साल पहले हुए इसी तरह के एक हादसे की याद दिला दी, जब 12 बच्चों और एक कोच को 15 दिनों बाद जिंदा निकाला जा सका था।
उत्तरकाशी ज़िले में यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगांव के बीच निर्माणाधीन सुरंग में हुए हादसे में 40 मजदूर फंसे हैं। मजदूरों को बचाने का रेस्क्यू ऑपरेशन लगातार चल रहा है। हालांकि इसमें दिक्कतें भी हो रही है। लेकिन इस घटना ने थाईलैंड में 5 साल पहले हुए उस हादसे को फिर चर्चाओं में ला दिया। जिसमें थाईलैंड की जूनियर फुटबॉल टीम एक गुफा में फंस गई और उससे बाहर आने के सारे रास्ते बंद हो गए। ऐसे में कैसे इस गुफा में फंसे सभी लोगों को बचा लिया गया था। ये दुनिया का सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन भी माना जाता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तराखंड में मौजूद टीम थाइलैंड की रेस्क्यू टीम से भी संपर्क में है ताकि नाजुक हालातों में मदद ली जा सके।
2018 में क्या हुआ था वहां
दरअसल, 23 जून 2018 में थाईलैंड की एक जूनियर एसोसिएशन फुटबॉल टीम ने अपने सहायक कोच के साथ उत्तरी थाईलैंड के चियांग राय प्रांत में थाम लुआंग नांग नॉन गुफा में प्रवेश किया। ये काम उन्होंने अपने अभ्यास कार्यक्रम के तहत किया था। ये गुफा ना केवल लंबी थी बल्कि इसके आसपास के इलाकों में पानी भी था। इस टीम के सदस्यों की उम्र 11 से 16 साल के बीच थी और सहायक कोच की उम्र 25 साल थी।
पानी से भरी गुफा में फंसी थी पूरी फुटबॉल टीम
जूनियर टीम के गुफा में जाने के कुछ ही समय बाद भारी बारिश शुरू हो गई। गुफा में पानी भरने लगा। इससे उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद हो गया। वो इसके अंदर ही फंस गए। इसमें जल स्तर बढ़ता जा रहा था। टीम के सदस्य एक हफ्ते से कहीं ज्यादा समय तक गुफा में फंसे रहे। उनके जिंदा बचने की उम्मीद ही छोड़ दी गई थी।
रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू
दुनियाभर में बचाव को लेकर प्रयास होने शुरू हुए। दुनियाभर की कई टीमें यहां पहुंची। वो अलग अलग क्षेत्रों की एक्सपर्ट टीमें थीं। 2 जुलाई को दो ब्रिटिश गोताखोर इस गुफा में घुसे तो उन्होंने 4 किलोमीटर दूर पूरी टीम को एक ऊंची चट्टान पर चढ़े हुए सुरक्षित पाया। अब अगली रणनीति ये बनाई जाने वाली थी कि कैसे अंदर घुसकर उन्हें बचाया जाए।
सवाल कई.. अभियान मुश्किल
सवाल कई थे जैसे.. क्या उन्हें जल्दी बचाने के लिए पानी के नीचे से निकलने की गोताखोरी सिखाया जाए? क्या गुफा में एक नया प्रवेश द्वार खोजें या ड्रिल करें? क्या बाढ़ के पानी के कम होने का इंतजार करें? हालांकि ये सभी विकल्प बहुत मुश्किल थे। क्योंकि मौसम विभाग का अनुमान था कि बारिश अभी फिर आ सकती है। कुछ दिनों बाद मानसून का सीजन भी शुरू होने वाला था। ऐसे में जो कुछ करना था, वो जल्दी करना था।
कैसी थी ये गुफा
पहले बात कर लेते हैं गुफा की.. दरअसल, ये गुफा यानि थाम लुआंग नांग नॉन थाईलैंड और म्यांमार के बीच की सीमा पर दोई नांग नॉन पहाड़ के नीचे है। ये 10 किलोमीटर लंबी गुफा है, जिसमें अंदर सैकड़ों मीटर की चूना पत्थर की घुमावदार गहरी खाइयां, संकीर्ण मार्ग और सुरंगें हैं।
10 हजार लोगों की टीम बनी
बचाव कार्य में 10,000 से अधिक लोग शामिल किए गए। 100 से अधिक गोताखोर लगाए गए। कई बचावकर्मी करीब 100 सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधि, 900 पुलिस अधिकारी और 2,000 सैनिक इसमें शामिल हुए। 10 पुलिस हेलीकॉप्टर, 07 एंबुलेंस, 700 से अधिक गोताखोरी सिलेंडर तो इस्तेमाल में लाया गया, लेकिन गुफा के अंदर एक अरब लीटर से अधिक पानी निकालने की चुनौती भी थी। हालांकि इस अभियान में रॉयल थाई नेवी सील के एक गोताखोर की मौत भी हो गई।
गंदे पानी से तैरकर बच्चों तक पहुंचे गोताखोर
थाई गोताखोरों ने जब गुफा में घुसना शुरू किया तो इसमें अंदर पानी इतना गंदा था कि रोशनी के बावजूद कुछ नजर नहीं आ रहा था कि पानी के भीतर कहां जा रहे हैं। खोज को अस्थायी रूप से रोकना पड़ी। 27 जून को फिर कई उपकरणों की मदद से काम शुरू हुआ। गोताखोरों की अलग टीमें बनाई गईं। खोजी कुत्तों, ड्रोन और रोबोट का उपयोग किया गया लेकिन दिक्कतें लगातार सामने आ रही थीं। लोग उम्मीद छोडने लगे थे। खराब मौसम के कारण काम रोकना पड़ा। जिसे 2 जुलाई से फिर शुरू किया गया। गुफा में आक्सीजन का स्तर भी कम होने लगा था, ये नया खतरा था।
कैसे बाहर निकलने का अभियान चला
फिर दो काम किए गए। नेवी सील के गोताखोरों के जरिए फंसे बच्चों तक खाना पहुंचाया जाने लगा। उन्हें संदेश दिए और लिये गए। गोताखोरों ने बच्चों को अंदर ही गोताखोरी सिखानी शुरू की। फिर अंदर का पूरा नक्शा बनाकर 18 बचाव गोताखोरों को लड़कों को निकालने के लिए गुफाओं में भेजा गया। लड़कों को खास वेटसूट पहनाया गया। आक्सीजन सिलेंडर लगाया गया। हर बच्चे को एक गोताखोर के साथ बांधा गया, हालाकि इस पूरे अभियान में बहुत जोखिम था।
बीच-बीच में कई मुश्किलें आईं
गोताखोरों ने बहुत संकरी जगहों से उन्हें सावधानी से निकलना शुरू किया। पहले बच्चों को गुफा के एक बेस तक पहुंचाया गया। फिर वहां से गुफा से बाहर निकालने का एक रास्ता बनाकर सैकड़ों बचावकर्मियों ने उन्हें ‘डेज़ी चेन’ से निकालना शुरू किया। ये बहुत जटिल अभियान था, जिसमें एक एक बच्चे को निकालने के लिए घंटों लग रहे थे। 8 जुलाई से लेकर 10 जुलाई तक बच्चों को धीरे धीरे दो और तीन में निकाला गया। हालांकि पूरे अभियान में कई बार बचाव उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया। कभी पाइप फट गया।
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कैसे करीब 15 दिन बच्चे गुफा में बचे रहे
दरअसल टीम के साथ मौजूद सहायक प्रशिक्षक पहले एक बौद्ध भिक्षु था। उन्होंने बच्चों को इस दौरान खास ध्यान कराने पर फोकस किया, जिससे बच्चों ने भूख के साथ कठिन परिस्थितियों पर काबू पाने का काम किया। हालांकि ऐसी गुफा में उनका 15 दिनों तक जिंदा रहना किसी आश्चर्य से कम नहीं था, क्योंकि दुनिया में हर कोई मान चुका था कि इसमें से कोई भी बच्चा शायद ही जिंदा बचे।