Ramman: बेहद रोचक है उत्तराखंड का प्रसिद्ध रम्माण उत्सव: जानें कैसे मिली इसको विश्व धरोहर सूची में पहचान?

उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूड-डुंग्रा गांव में प्रति वर्ष अप्रैल माह में रम्माण उत्सव (Ramman festival) का आयोजन होता है। इस उत्सव को वर्ष 2009 में यूनेस्को की ओर से राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित किया गया है।


चमोली जिले के पैनखंड क्षेत्र के सलूड डुंग्रा में रम्माण का आयोजन प्रतिवर्ष अप्रैल माह में बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व किया जाता है। रम्माण अपनी विशिष्ट नाट्य शैली और मुखौटों के लिए अगल पहचान लिए हुए है। जिसे देखते हुए यूनेस्को की ओर से वर्ष 2009 में रम्माण को विश्व धरोहर में शामिल किया गया था। इतना ही नहीं अब तक कुल दो बार रम्माण ने 26 जनवरी गणतंत्र दिवस समारोह में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व भी कर लिया है।

500 वर्षों से चली आ रही है परंपरा 

रम्माण जहां स्थानीय लोगों की आस्था को संजोए हुए है। वहीं विश्व धरोहर होने के चलते देश और दुनिया के लोगों के लिए यह आयोजन आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यह धार्मिक विरासत 500 वर्षों से चली आ रही है। इसमें राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान के पात्रों द्वारा नृत्य शैली में रामकथा की प्रस्तुति दी जाती है। इसमें 18 मुखौटे 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, 8 भंकोरे का प्रयोग होता है।

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इसके अलावा रामजन्म, वनगमन, स्वर्ण मृग वध, सीता हरण और लंका दहन का मंचन ढोलों की थापों पर किया गया।इसमें कुरू जोगी, बण्यां-बण्यांण और माल के विशेष चरित्र होते हैं। यह लोगों को खूब हंसाते हैं। साथ ही वन्‍यजीवों के आक्रमण का मनमोहक चित्रण म्योर-मुरैण नृत्य नाटिका होती है। रम्माण के अंत में भूम्याल देवता प्रकट होते हैं। समस्त ग्रामीण भूम्याल देवता को एक परिवार विशेष के घर विदाई देने पहुंचते हैं। उसी परिवार द्वारा साल भर भूम्याल देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद उस घर के आंगन में प्रसाद बांटा जाता है। इसके साथ ही इस पौराणिक आयोजन का समापन होता है।

रम्माण को कैसे मिली विश्व धरोहर सूची में पहचान?

बता दें कि रम्माण उत्सव वर्ष 2007 तक एक निश्चित क्षेत्र तक सिमट तक रह गया था, लेकिन गांव वासियों द्वारा बताया गया कि स्थानीय गांव के शिक्षक डॉक्टर कुशल सिंह भंडारी की ही मेहनत का नतीजा था कि आज रम्माण को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। डॉक्टर भंडारी ने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी अनुवाद किया उसके बाद गढ़वाल विवि लोक कला निष्पादन केंद्र की सहायता से 2008 में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र तक पहुंचाया और बाद में भारत सरकार ने यूनेस्को को भेज दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि रम्माण नृत्य को 2 अक्टूबर 2009 में विश्व विरासत सूची में सम्मलित किया गया था।

चमोली जिला प्रशासन ने तैयारियां की शुरु

चमोली के सलूड़-डुंग्रा गांव में आयोजित होने वाली विश्व धरोहर रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला प्रशासन ने कवायद शुरु कर दी है। जिसे लेकर जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने मंगलवार को जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक ली। उन्होंने रम्माण के भव्य आयोजन को लेकर की जा रही तैयारियों की जानकारी लेते हुए अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए।

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जिलाधिकारी ने बैठक में रम्माण के भव्य आयोजन के लिए जिला पर्यटन अधिकारी बृजेंद्र पांडे को आयोजन स्थल को फूलों और लाइट से सजाने के साथ ही दर्शकों के बैठने की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने आयोजन के प्रचार प्रसार के लिए मीडिया का सहयोग लेने के साथ ही यूट्यूबर और अन्य सोशल मीडिया ब्लॉगरों को आमंत्रित करने की बात कही। उन्होंने कहा कि चमोली जनपद में आयोजित होने वाला रम्माण विश्व धरोहर है। जिसे देखते हुए इसके संरक्षण और प्रचार प्रसार के लिए आयोजन को भव्य स्वरुप दिया जा रहा है। कहा कि विश्व धरोहर रम्माण को मीडिया और सोशल मीडिया के सहयोग से प्रचारित प्रसारित कर नई पीढ़ी को इस आयोजन से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।