भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ‘भारत-भारती’ ने जलाई देशभक्ति की ज्‍वाला

चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में…

स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में…

पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से…

मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से…

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये कविता आज भी हर किसी के जुबां पर रहती है। उन्होंने ही हिंदी साहित्य में खड़ी बोली की शुरुआत की थी। गुप्त का काव्य जन-जागरण और नैतिक चेतना से ओतप्रोत था। राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना से ओतप्रोत परिमार्जित खड़ी बोली की उनकी रचनाओं ने बड़े वर्ग पर प्रभाव डाला।  मैथिलीशरण गुप्त की कीर्ति भारत में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुईं थी। इसी कारण से महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की उपमा दी थी। मैथिलीशरण गुप्त की जयंती को हर साल 3 अगस्त को कवि दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। तो आइये जानते हैं इनके जीवन से जुडी हुईं कुछ रोचक जानकारियां…………

कवि मैथिलीशरण का जन्म

कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 ई. को झाँसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम कशीवाई था। उनके बचपन का नाम ‘मिथिलाधिप नंदनशरण’ था लेकिन विद्यालय के रजिस्टर में इतना बड़ा नाम अट नहीं रहा था तो इसे ‘मैथिलीशरण’ कर दिया गया। धनाढ्य वैश्य घराने में जन्म लेने के कारण नाम में ‘गुप्त’ शामिल हो गया।

प्रारभिक शिक्षा गाँव में ही संपन्न हुईं

मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट–कूट कर भरे थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत–प्रोत हैं। राष्ट्र कवि गुप्त की प्रारभिक शिक्षा इनके अपने गाँव में ही संपन्न हुईं। इन्होंने मात्र 9 वर्ष की आयु में शिक्षा छोड़ दी थी। इसके उपरांत इन्होने स्वाध्याय द्वारा अनेक भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था।

हिंदी साहित्य की खड़ी बोली के प्रथम कवि

हिंदी साहित्य के इतिहास में वह खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। पद्य-रचना की ओर उनका झुकाव ‘लघु सिद्धांत कौमुदी’ पढ़ते हुए हुआ। आरंभ में ब्रजभाषा में काव्य-सृजन किया और संस्कृत छंदों में अनेक अन्योक्तियाँ लिखी। राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक नैतिकता और मानवीय उत्थान उनके काव्य का उत्स है। उनकी कृतियों में देश का अतीत, वर्तमान और भविष्य बोलता है।

ब्रजभाषा में ‘कनकलता’ पहली कविता लिखी

गुप्त का मार्गदर्शन मुंशी अजमेरी जी से हुआ और 12 वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में ‘कनकलता’ नाम से पहली कविता लिखना आरंभ किया था। महादेवी वर्मा के संपर्क में आने से उनकी कवितायेँ खाड़ी बोली सरस्वती में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गया था। प्रथम काव्य संग्रह “रंग में भंग” तथा बाद में “जयद्रथ वध” प्रकाशित हुई।

अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ लिखी कविताएं

वह बचपन में ‘स्वर्णलता’ नाम से छप्पय लिखते थे, फिर किशोरावस्था में ‘रसिकेश’, ‘रसिकेंदु’ आदि नाम भी प्रयोग करने लगे। उन्होंने अनुवाद का कार्य ‘मधुप’ नाम से किया और ‘भारतीय’ और ‘नित्यानंद’ नाम से अँग्रेज़ सरकार के खिलाफ कविताएं लिखी।

उन्नति तथा अवनति प्रकृति का नियम एक अखंड है,
चढ़ता प्रथम जो व्योम में, गिरता वही मार्तंड है.
अतएव अवनति ही हमारी, कह रही उन्नति-कला,
उत्थान ही जिसका नहीं, उसका पतन ही क्या भला?
होता समुन्नती के अनंतर सोच अवनति का नहीं,
हां, सोच तो है जो किसी की, फिर न हो उन्नति कहीं.
चिंता नहीं जो भी व्योम-विस्तृत चंद्रिका का ह्रास हो,
चिंता तभी है जब न उसका फिर नवीन विकास हो.
है ठीक ऐसी ही दशा, हतभाग्य भारतवर्ष की,
कब से इतिश्री हो चुकी, इसके अखिल उत्कर्ष की.

                                                                                                   (भारत भारती)

महात्मा गाँधी ने दी राष्ट्रकविकी उपाधी

साहित्य जगत उन्हें ‘दद्दा’ पुकारता था। उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ में ‘मेघनाथ बध’ अथवा ‘’ब्रजांगना’’ का भी अनुवाद किया था। उनकी कृति ‘भारत-भारती’ (1912) स्वतंत्रता संग्राम के समय व्यापक प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गाँधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी दी थी। राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त 12 दिसम्बर सन 1964 ई. को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए। उनकी रचनाएं भारतीय सहित्य की अमूल्य धरोहर हैं, जो पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

ये हैं कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचनायें

  • यशोधरा
  • रंग में भंग
  • साकेत
  • भारत भारती
  • पंचवटी
  • जय भारत
  • पृथ्वीपुत्र
  • किसान
  • हिन्दू
  • चन्द्रहास
  • कुणालगीत
  • द्वापर आदि.

इन सम्मानों से नवाजा गया

  • इलाहाबाद विश्विद्यालय से मैथिलीशरण गुप्त को डी.लिट. की उपाधि प्राप्त हुई थी।
  • 1952 में मैथिलीशरण गुप्त राज्यसभा में सदस्य के लिए मनोनीत भी हुए थे।
  • 1954 में मैथिलीशरण गुप्त को पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।