Shri Dev Suman: श्री देव सुमन को टिहरी रियासत और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ जनक्रान्ति कर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए याद किया जाता है। वो 25 जुलाई 1944 को 84 दिन भूख हड़ताल के बाद शहीद हो गए थे।
राजशाही के चंगुल से टिहरी की प्रजा को आजाद कराने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी श्रीदेव सुमन की आज पुण्यतिथि है। उन्होंने 84 दिन के ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 को मात्र 29 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। तो चलिए जानते हैं उनके बारे में…
श्रीदेव सुमन का जीवन
श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी जिले के चंबा विकासखंड के जौल गांव में 25 मई 1916 को हुआ था। उनका मूल नाम श्रीदत्त बडोनी था। उनके पिता का नाम हरिराम बडोनी और माता का नाम तारा देवी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपर प्राइमरी स्कूल चंबा में हुई। 1929 में मिडिल स्कूल टिहरी से हिंदी मिडिल परीक्षा उर्तीण की। देहरादून से उच्च शिक्षा के बाद सनातन धर्म स्कूल में अध्यापक रहे। इसके बाद 1930 में नमक सत्याग्रह आंदोलन में 13-14 दिन जेल में रहे।
1936 में गढदेश सेवा संघ की स्थापना
उन्होंने 22 मार्च 1936 गढदेश सेवा संघ की स्थापना की थी। जबकि, जून 1937 में ‘सुमन सौरभ’ कविता संग्रह प्रकाशित किया। वहीं, जनवरी 1939 में देहरादून में प्रजामंडल के संस्थापक सचिव चुने गए। मई 1940 में टिहरी रियासत ने उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया। वहीं, श्रीदेव सुमन को मई 1941 में रियासत से निष्कासित कर दिया गया।
1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार
श्रीदेव सुमन ने क्रूर राजशाही के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजा दिया। राजशाही के फरमान पर श्रीदेव सुमन को अनेकों बार टिहरी जेल में डाला गया। उन्हें जुलाई 1941 में टिहरी में पहली बार गिरफ्तार किया गया। जबकि, उनकी अगस्त 1942 में टिहरी में ही दूसरी बार गिरफ्तारी हुई। नवंबर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान आगरा सेंट्रल जेल में बंद रहे। उन्हें नवंबर 1943 में आगरा सेंट्रल जेल से रिहा किया गया। फरवरी 1944 में टिहरी जेल में सजा सुनाई गई।
84 दिनों तक अधिकारों के लिए किया अमरण अनशन
अंतिम बार वह 209 दिनों तक टिहरी जेल में रहे। उन्हें जेल में अनेकों यातनाएं दी गई। टिहरी राजशाही द्वारा उन्हें 35 सेर लोहे की बेड़िया से बंदी बनाकर जेल में रखा गया। नारकीय जीवन जीने को मजबूर किया गया। इतना ही नहीं उनको रोटियों में कांच पीसकर खिलाया गया। अत्याचारों के खिलाफ सुमन जी ने टिहरी जेल में 3 मई 1944 से आमरण अनशन शुरू कर दिया था। 84 दिनों तक वह आमरण अनशन पर डटे रहे और प्रजा के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए 25 जुलाई 1944 को उन्होंने प्राणों की आहुति दे दी।
नेहरू ने कहा था हम इस वीर को कभी नहीं भूलेंगे
जवाहरलाल नेहरू ने 31 दिसम्बर 1945 का उदयपुर में आयोजित देशी राज्य लोक परिषद के अधिवेशन में अपने भाषण में कहा था- ‘‘हमारे साथियों में से जो अनेक शहीद हुए हैं उनमें टिहरी राज्य के श्रीदेव सुमन का मैं विशेष तौर पर उल्लेख करना चाहता हूं। हममें से अनेक इस वीर को याद करते रहेंगे, जो कि राज्य की जनता की आजादी के लिए काम किया करते थे…।’’
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बता दें कि आजादी के बाद से टिहरी रियासत जेल में श्रीदेव सुमन कक्ष बना हुआ है, जहां पर उनकी बेड़िया आज भी सुरक्षित रखी गई हैं, जिन्हें आज दर्शनों के लिए रखा जाता है।