कौन हैं सविता कंसवाल? जिनका अवॉर्ड लेने आए पिता तो हर आंख हुई नम

Savita Kanswal: सविता कंसवाल, भारत की ऐसी पहली महिला, जिन्होंने माउंट एवरेज और माउंट मकालू पर चढ़कर इतिहास रचा। महज 16 दिनों में उन्होंने 28 मई को माउंट मकालू चोटी पर सफलता हासिल की थी। 


Savita kanswal: पर्वतारोहण के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियां हासिल करने वाली दिवंगत पर्वतारोही सविता कंसवाल (Savita Kanswal) को मरणोपरांत तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 (Tenzing Norgay National Adventure Award 2022) से नवाजा गया है।राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्व. सविता के पिता राधेश्याम कंसवाल को अवार्ड सौंपा। अवार्ड ग्रहण करने के लिए सविता की मां कमलेश्वरी देवी भी गईं थीं। अवार्ड देखकर सविता के माता-पिता भावुक हो गए।

खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने वीडियो शेयर की है, जिसमें सविता के पिता राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अवॉर्ड लेते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो को पोस्ट करते हुए उन्होंने कैप्शन में लिखा कि दिन का सबसे भावुक पल। यह बेहद इमोशनल और गर्व से भरपूर रहा, जब श्री राधे श्याम कंसवाल जी ने अपनी दिवंगत बेटी सविता कंसवाल की तरफ से लैंड एडवेंचर में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 लिया।

कठिनाइयों में गुजरा बचपन

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लाॅक के ग्राम लौंथरू निवासी सविता का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। सविता के पिता घर का गुजारा करने के लिए पंडिताई का काम करते हैं। चार बेटियों में सविता सबसे छोटी थी। अन्य तीन बहनों की शादी हो चुकी है।

ऐसा रहा सविता का सफर

किसी तरह पैसे जुटाकर सविता ने 2013 में नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउंटेनियरिंग से माउंटेनियरिंग में बेसिक और फिर एडवांस कोर्स किया। इसके लिए उसने देहरादून में नौकरी भी की। इसके बाद सविता कंसवाल ने 12 मई 2022 को माउंट एवरेस्ट 8,848.86 मीटर और इसके 16 दिन बाद 28 मई को माउंट मकालू पर्वत 8,463 मीटर पर सफल आरोहण किया था। 16 दिन के अंतराल में माउंट एवरेस्ट व माउंट मकालू का आरोहण करने वाली सविता देश की पहली महिला बनी थी।

पर्वतारोहण के इतिहास का काला दिन

गौरतलब है कि 4 अक्टूबर 2022 को उत्तरकाशी में द्रौपदी का डांडा चोटी के आरोहण के दौरान 29 सदस्यीय पर्वतारोही का दल एवलांच की चपेट में आ गया था, जिसमें सविता कंसवाल की भी बर्फ में दबकर मौत हो गई थी। यह एवलांच पर्वतारोहण के इतिहास में काला दिन माना जाता है। सविता को मरणोपरांत यह पुरस्कार मिलने पर क्षेत्र के लोगों ने खुशी जताई है।

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सविता भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका जज्बा और जिजीविषा हम सबके लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण है कि कैसे मुश्किलों से पार पाकर बड़ी से बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है।