UTTARAKHAND DHOL VADAK: आखिर कौन हैं चमोली के ढोल सागर क़े ज्ञाता नरेश आर्य? 

रिपोर्ट – सुरजीत सिंह बिष्ट

UTTARAKHAND DHOL VADAK: ढोल सागर के ज्ञाता एवं ढोल सागर के सम्राट के नाम से उत्तम दास को जाना जाता है जिन्हें अपनी इस कला के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही जागर सम्राट व ढोल-वादक के रूप में प्रीतम भरतवाण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त है।

लेकिन आज हम रूबरू कराने वाले हैं ढोल सागर क़े एक ऐसे ज्ञाता की जिन्हे ढोल-दमाऊ से बजाई जाने वाली सभी तालों का गहरा ज्ञान है। अपने इस ज्ञान और कला के प्रदर्शन से नरेश आर्य एवं उनके साथी रोशन लाल पूरे क्षेत्र-भर में चर्चाओं में है ।

ढोल सागर के ज्ञाता नरेश आर्य

उत्तराखंड की पारंपरिक एवं राजकीय वाद्य यंत्र ढोल के प्रमुख ज्ञाता नरेश आर्य जनपद चमोली की विकासखंड नंदानगर के भेंटी गांव क़े निवासी है। और उनके साथी दमाऊ वादक रोशन लाल विकासखंड नंदा नगर के ही उस्तोली गांव के है। पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल दमाऊ के वादक के रूप में दोनों वादकों की जोड़ी वर्तमान में खूब चर्चाओं में है।

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ढोल वादक के रूप में *नरेश आर्य एवं रोशन लाल * पीढ़ियों से इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं । ढोल दमाऊ से बजाई जाने वाली *धुयाँल, रहमानी वह अन्य अवसरों पर विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को बजाया जाता है।

हाल ही में नंदा नगर के लुणतरा गांव में पारंपरिक लोक नृत्य पांडव नृत्य का आयोजन किया गया था। जिसमें ढोल दमाऊ वादक के रूप में नरेश आर्य एवं उनके साथी रोशन लाल ने बखूबी ढोल सागर की कला का प्रदर्शन दिखाया।

ग्राम वासियों ने पांडव नृत्य के समापन के पश्चात ढोल सागर के ज्ञाता नरेश आर्य एवं रोशन लाल को सम्मान के साथ विदाई दी। स्थानीय महिलाओं एवं व्यक्तियों के द्वारा उन्हें माला व भेंट अर्पित कर सम्मान के साथ विदा किया गया। ग्राम सभा लुणतरा में इस तरह का सम्मान मिलने से नरेश आर्य एवं रोशन लाल स्वयं भावुक हो पड़े, और आगे भी ग्राम सभा लुणतरा में इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम में अवश्य आने की बात कही।

ढोल दमाऊ पांडव नृत्य की धड़कन

पांडव नृत्य में ढोल-दमाऊ का महत्व अत्यंत है, क्योंकि इनकी शक्तिशाली ध्वनि ही देवताओं का आह्वान करती है, पांडवों (पश्वा) को अवतरित कराती है, नृत्य को गति देती है और यह एक पवित्र अनुष्ठान का अभिन्न अंग है, जो स्थानीय देवताओं का आशीर्वाद दिलाता है, साथ ही ढोल-दमाऊ विभिन्न तालों (जैसे पांडो ताल) से अवसरों और भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

ढोल की विशेष धुन बजते ही पांडवों की भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों (पश्वा) पर पांडवों की आत्मा अवतरित होती है, जिससे वे नृत्य में पूरी तरह लीन हो जाते हैं।

सांस्कृतिक पहचान ढोल-दमाऊ

उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की आत्मा हैं और सदियों से लोक परंपराओं, त्योहारों और शादियों का अभिन्न अंग रहे हैं, जो उनकी संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाते हैं।