शौर्य और साहस का दूसरा नाम था CDS General Bipin Rawat, जानें उसकी वीरता की गाथा

CDS General Bipin Rawat Death Anniversary: जनरल बिपिन रावत को 31 दिसंबर 2019 को देश के पहले सीडीएस की जिम्मेदारी दी गई थी। सीडीएस का पद दिए जाने से पहले वह देश के 27वें थल सेना अध्यक्ष रहे। भारत सराकर ने  उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 


CDS General Bipin Rawat Death Anniversary2023: आज देश के पहले सीडीएस रहे स्वर्गीय बिपिन रावत की दूसरी पुण्यतिथि है। 8 दिसंबर 2021 को तमिलनाडु के कुन्नूर के नीलगिरी के जंगलों में हेलिकॉप्टर क्रैश होने से उनकी मौत हो गई थी। उनके साथ उनकी पत्नी मधुरिका रावत और 11 अन्य रक्षा बल कर्मियों की भी मौत हो गई थी। बिपिन रावत ऐसे योद्धा थे, जिनके नाम से ही दुश्मन थर-थर कांपता था। आज पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है।

सैन्य परिवार में जन्म

सीडीएस जनरल बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले में हुआ था। एक सैनिक परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनके पिता भी सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल थे। बिपिन रावत ने देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी और खड़कवासला में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से भी डिग्री हासिल की थी। जहां उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ हासिल हुआ था। अपनी काबिलियत, समर्पण और देशभक्ति के जुनून के चलते वे स्वाभाविक रूप से बाद में भारतीय सेना के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचे।

देश के पहले सीडीएस बनाए गए

आर्मी प्रमुख बनने से पहले उन्होंने कई सैन्य विभागों में सेवा की। जहां उनके कई साहसी फैसलों की छाप आज भी बरकरार है। उनकी बहादुरी और कर्तव्यनिष्ठा को देखकर आर्मी चीफ पद से रिटायर होने के बाद उन्हें देश का पहला सीडीएस बनाया गया था। बता दें कि जनरल बिपिन रावत को 31 दिसंबर 2019 को देश के पहले सीडीएस की जिम्मेदारी दी गई थी। सीडीएस का पद दिए जाने से पहले वह देश के 27वें थल सेना अध्यक्ष रहे। भारत सराकर ने उन्हें मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

सेना में करियर की शुरुआत

बता दें कि बिपिन रावत ने 16 दिसंबर 1978 को 11 गोरखा राइफल्स की 5वीं बटालियन से अपने सैन्य करियर की शुरुआत की। इसके बाद जनवरी 1979 में उनकी पहली पोस्टिंग मिजोरम में हुई। नेफा इलाके में जब रावत की तैनाती हुई तो उन्होंने बटालियन की अगुवाई भी की। रावत ने कांगो में यूएन की पीसकीपिंग फोर्स की भी अगुवाई की। 1987 में अरुणाचल प्रदेश स्थित सुमदोरोंग चू घाटी में हुई भारत-चीन झड़प के दौरान भी चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को हराने के लिए तत्कालीन कैप्टन रावत की बटालियन को तैनात किया गया था। चीन के साथ यह गतिरोध 1962 में हुए युद्ध के बाद विवादित मैकमोहन बॉर्डर लाइन पर पहला सैन्य टकराव था।

ऊंचाई पर जंग लड़ने और इन चीजों में थे एक्सपर्ट

सेना में 43 साल के अपने सेवाकाल के दौरान जनरल रावत का नाम सबसे ज्यादा इसलिए भी चर्चित था, क्योंकि वो कई चीजों के एक्सपर्ट थे। रावत ऊंचाई वाले इलाकों पर युद्ध लड़ने में माहिर थे, इसी के साथ वे काउंटर ऑपरेशन और कश्मीर मामले के भी एक्सपर्ट माने जाते थे। चीन की सीमाओं और एलओसी पर कैसे सैन्य कार्रवाई की जाए इसकी समझ भी उनमें काफी थी, इसी कारण वो इन इलाकों में सबसे ज्यादा तैनात भी रहे।

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जब दहाड़े थे जनरल रावत

जनरल रावत ऐसे जांबाज योद्धा थे, जिन्होंने कई दफा दुश्मनों की आंख में आंख डालकर देखा था। ये बात है साल 2015 की, जब भारतीय सेना ने म्यांमार में घुसकर कुछ आतंकियों का सफाया किया था। इसके बाद सेना ने 2016 में पीओके में घुसकर पाकिस्तान को जवाब दिया। जब इसका जवाब देने की बारी आई तो जनरल रावत ने दहाड़ते हुए कहा ‘यह वो भारत नहीं है जो बस हमलों की निंदा करे, यह नया भारत है, जो हर भाषा जानता है, सम्मान की भी और बंदूक की भी’।

आज भी पाकिस्तानी मीडिया दिखाता है बयान

जनरल रावत की इस दहाड़ को आज भी पाकिस्तानी मीडिया में दिखाया जाता है। इसके बाद लगातार आतंकियों में जनरल रावत का डर पैदा हो गया। जब तक वो आर्मी चीफ रहे तब तक सेना ने आतंक के खिलाफ कई मिशनों को अंजाम दिया।

भारतीय सेना है दोस्ताना फौज

जनरल रावत का एक और बयान काफी याद किया जाता है। उन्होंने कहा था कि हम एक दोस्ताना आर्मी हैं, लेकिन जब हमें कानून और व्यवस्था बनाने के लिए बुलाया जाता है तो लोगों के हमसे डरना चाहिए।

कश्मीरी पत्थरबाजों को दिया था जवाब

जनरल रावत ने कश्मीर में पत्थरबाजों को जबरदस्त जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि काश, ये लोग हम पर पत्थर की जगह गोलीबारी कर रहे होते, जो मैं ज्यादा खुश होता। तब कम से कम मैं वो कर पाता जो मैं करना चाहता हूं। उनके इस बयान का मतलब कट्टरपंथी समझ गए और कश्मीर में पत्थरबाजी कम हो गई।

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बिपिन रावत की मौत कब और कैसे हुई

8 दिसंबर 2021 को जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 11 अन्य लोगों की तमिलनाडु के कुन्नूर में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जान चली गई थी। दुर्घटना में मारे गए अन्य लोगों में उनके रक्षा सलाहकार ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिद्दर, स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल हरजिंदर सिंह, विंग कमांडर पीएस चौहान, स्क्वाड्रन लीडर के सिंह, जेडब्ल्यूओ दास, जूनियर वारंट अधिकारी प्रदीप ए, हवलदार सतपाल, नायक गुरसेवक सिंह, नायक जितेंद्र कुमार, लांस नायक विवेक कुमार और लांस नायक साईं तेजा थे।

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